Tuesday, December 21, 2010

सत्कार और फूड फिट, तो वेडिंग सुपरहिट
सुबोध भारतीय
First Published:20-12-10 02:59 PM
Last Updated:20-12-10 03:00 PM
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शादी के आयोजन में सबसे पहला सवाल यह खड़ा होता है कि शादी किसी बैंक्वेट हॉल में हो, फाइव स्टार होटल में या पण्डाल में। इसका जवाब एकदम सीधा है-दो या तीन सौ मेहमानों की गैदरिंग के लिए बैंक्वेट हॉल ठीक रहते हैं। आपका बजट अच्छा है तो फाइव स्टार होटल्स चुन सकते हैं। यदि मेहमानों की संख्या पांच-छह सौ से अधिक है तो फार्म हाउस अथवा पण्डाल में आयोजन करना ठीक रहेगा।

पंडाल या बैंक्वेट हॉल आदि की सजावट में बहुत ध्यान देना चाहिए-खासकर फूलों की अच्छी सजावट से माहौल सुंदर और खुशनुमा लगने लगता है।

जयमाला

आजकल शादियों में जयमाला के दौरान रिवॉल्विंग स्टेज पर दूल्हा-दुल्हन फूलों की वर्षा के बीच मालाओं का आदान-प्रदान करते हैं। इसी प्रकार दूसरा ट्रैन्ड इस प्रकार की स्टेज का है, जिसमें दूल्हा-दुल्हन दोनों तरफ बनी स्वचालित सीढ़ियों से ऊपर आते हैं और नीचे बनी दो स्टेजों पर डांसरों की टोली उनका स्वागत करती है। फिर वे फूलों की वर्षा के बीच मालाओं का आदान-प्रदान करते हैं। पीछे आतिशबाजी के साथ दूल्हा-दुल्हन का नाम जल उठता है।

कैटेरिंग व्यवस्था

शादी की दावत में 100-150 आइटम होना अब आम बात हो गई है। यह एक सर्वमान्य सत्य है कि एक मेहमान औसतन 300 से 400 ग्राम तक ही खा सकता है। आजकल प्रति मेहमान 1 किलो से भी अधिक भोजन की व्यवस्था की जाती है, नतीजतन 50 से 60 प्रतिशत खाना वेस्ट हो जाता है। दिल्ली की शादियों में नॉर्थ इंडियन फूड के साथ राजस्थानी, मुगलई, लखनवी, चाइनीज, साउथ इंडियन, थाई, इटैलियन, मैक्सिकन के साथ ढाबा फूड भी पेश किया जा रहा है। लाइव किचन आज का लेटेस्ट ट्रैंड है। तवा सब्जी, तवा रोटी, ढाबा दाल, तड़का दाल, पास्ता आदि सभी लाइव किचन पर उपलब्ध होता है।

स्नैक्स में अब नयापन लाने के लिए मुरादाबाद, इंदौर, राजस्थान, मुंबई के विशेष स्नैक्स काउंटर लाए जा रहे हैं। मोमोज, स्वीट कॉर्न, दौलत की चाट, ढोकला चाट, फ्लेवर्ड हुक्का आदि लेटेस्ट ट्रैंड है। पीत्जा हट और डॉमिनोज जैसे ब्रांड्स के स्टॉल भी लगाये जाने लगे हैं।

फ्रैश फ्रूट चाट आजकल का पार्टियों का जरूरी हिस्सा हैं। इसमें देसी के साथ विदेशी फ्रूट्स की बहुतायत रहती है। बादाम, खजूर, छुआरे तथा इमली इनमें लेटेस्ट एडीशन हैं। ड्रिंक्स में कैफे कॉफी डे या कोस्टा कॉफी जैसे ब्रांड्स के स्टॉल लगाये जाने लगे हैं। डेजर्ट्स में अब चार-पांच तरह के हलवे के साथ रसमलाई, राज भोग, छैना पाइस, खीर के साथ छैने की अनगिनत मिठाइयां, गजक रेवड़ी के साथ केक, पेस्ट्रीज, टारटर भी पेश किए जाने लगे हैं। आइसक्रीम के दसियों फ्लेवर तो होते ही हैं, कुल्फी की भी अनेक वैरायटी उपलब्ध होती हैं।

मेहमाननवाजी के फॉर्मूले

आने वाले हर मेहमान का स्वागत पर्सनली करने का प्रयास करे। यह कभी न भूलें कि फंक्शन भले ही आपका है, इसकी रौनक मेहमानों से ही है।

विदा होते हुए मेहमानों से पूछें कि उन्होंने भोजन किया अथवा नहीं, उनके आने के लिये उन्हें धन्यवाद दें। आपके ऐसा करने से उन्हें फंक्शन के दौरान कोई असुविधा भी हुई होगी तो वह भूल जाएंगे।

अपने फंक्शन में कोई वीआईपी गेस्ट बुलाया है तो उसके चक्कर में अन्य मेहमानों को न भूलें। वीआईपी गेस्ट से जल्द छुटकारा पा लें या उसे किसी ऐसे परिजन के हवाले कर दें जो उसकी खातिर-तवज्जो करता रहे।

अपने विशिष्ट व करीबी मेहमानों के साथ सानुरोध फोटो खिंचवाएं और उसकी एक प्रति उन्हें भी प्रेषित करें। उन्हें आपका यह अंदाज अच्छा लगेगा।

शादी के सारे कार्यक्रम निबट जाने के बाद आये हुए मेहमानों की सूची बनायें और उन्हें एक धन्यवाद पत्र लिखें, विशेष कर बाहर से आये मेहमानों को।

शादी के सारे कार्यक्रम में घर व ऑफिस के कुछ कर्मचारियों और साथियों का परदे के पीछे और सामने काफी सहयोग रहता है। ऐसे सहयोगियों की सेवाओं को नजरअंदाज न करें, उन्हें सपरिवार सादर निमंत्रित करें और हो सके तो उन्हें कोई यादगार तोहफा भी बाद में दें।

शादी के आयोजन के बाद भाजी या मिठाई बांटना एक भारी बोझ लगता है, इसलिये मेहमानों को विदा करते समय ही यह काम निबटा लें।

यह कभी न भूलें कि शादी का आयोजन एक खुशी का मौका होता है, इस मौके का लाभ उठा कर रूठे रिश्तेदारों, दोस्तों को मनाएं। अप्रिय वाद-विवाद, मनमुटावों को भुला कर पूरी मस्ती से समारोह का आनंद उठाएं।

कैसी हो कैटरिंग

यदि आप पार्टी में नॉन-वेज फूड का इंतजाम कर रहे हैं तो वेजिटेरियन मेहमानों को नजरअंदाज न करें। उनके लिए थोड़ा दूर अलग इंतजाम करें, अरीब-करीब नहीं।

यदि आपने कॉकटेल का इंतजाम किया है तो उसके चक्कर में अन्य मेहमानों का डिनर लेट न करें। उनका भी ख्याल करें। डिनर सही समय पर शुरू करा दें।

कैटेरिंग की व्यवस्था करते समय इस बात पर ज्यादा ध्यान न दें कि आइटम ज्यादा हों, बल्कि यह देखें कि आइटम खाने योग्य हों और खाने वाला उनका भरपूर आनंद ले सके।

कैटेरिंग की व्यवस्था एक अच्छे कैटेरर को सौंपने के बाद किसी जिम्मेदार व्यक्ति को भी यह जिम्मा दें कि वह एक-एक आइटम टेस्ट करके देखे कि उसमें कोई कमी तो नहीं है।

यदि प्रति प्लेट खाने का इंतजाम किया गया है तो दावत शुरू होने से पहले प्लेटों की गिनती कर लें और एक करीब व्यक्ति को जिम्मेदारी सौंपें कि वह उस पर दूर से नजर रखे कि कोई गड़बड़ी न हो।

चाट या स्नैक्स के कुछ स्टॉल्स पर भीड़-सी लगने की संभावना रहती है। ऐसे स्टॉल्स पर ऐसी व्यवस्था पहले से करें कि भीड़ न लगने पाए।

Friday, December 17, 2010

शादी के कार्डस भी कहते हैं बहुत कुछ
सुबोध भारतीय
First Published:06-12-10 12:45 PM
Last Updated:06-12-10 12:46 PM
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आप किस लेवल की शादी करने जा रहे हैं। इसका काफी कुछ पता शादी कार्ड देख कर लग जाता है। यही वजह है कि शादी कार्डस की वैरायटी दिन-प्रतिदिन बढ़िया होती जा रही है। भारत की सबसे बड़ी शादी कार्ड मार्केट चावड़ी बाजार में 5 रुपये से लेकर 150 रुपये तक के शादी कार्ड उपलब्ध हैं। यदि आप इससे ऊपर की रेंज में जाना चाहें तो लुधियाना के फव्वारा चौक जाना होगा। यहां 50 रुपये से रेंज शुरू होकर 500 रुपये प्रति कार्ड तक जाती है। यदि आप इसके साथ मिठाई या भाजी का मैचिंग बॉक्स साथ लें तो यह रेंज 150 से लेकर 1000 रुपये तक चली जाएगी।

सबसे सस्ते कार्ड ऑफसेट प्रिंटिंग से बने होते हैं। स्क्रीन प्रिंटिंग, लीफ प्रिंटिंग और यूवी प्रिंटिंग महंगी तकनीक हैं। आजकल सभी अच्छे शादी कार्डों में इन्हीं का इस्तेमाल हो रहा है। दूल्हा-दुल्हन के नाम का लेजर कट में लोगो भी बनाया जा रहा है। मैटेलिक पेपर, साटन फैब्रिक व मैटल का भी इन शादी कार्डों में अच्छा इस्तेमाल किया जा रहा है।

शादी कार्ड के साथ मैचिंग स्वीट बॉक्स और पेपर बैग आजकल का लेटेस्ट ट्रैंड है। शादी के बाद लोगों के घर भाजी या मिठाई पहुंचाना आउट डेटेड हो गया है। इसकी बजाय लोग एडवांस में शादी कार्ड के साथ ही भाजी इत्यादि दे देते हैं। कुछ लोग शादी के समय अपने मेहमानों को विदा करते समय यह कार्य करने लगे हैं।

(यह लेख हिंदुस्तान के दिसंबर के अंक में प्रकाशित हुआ है)

वेडिंग सीजन: बैंड बाजे की शान है बारातियों की जान
सुबोध भारतीय
First Published:06-12-10 12:40 PM
Last Updated:06-12-10 12:44 PM
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आपके प्रियजन का रिश्ता तय हो गया। अब बारी है बारात की तैयारी की। बारात के साथ शानदार घोड़ी या बग्घी में सजा दूल्हा और सामने बैंड और ढोल की धुन पर मस्ती से नाचते बाराती। इससे शानदार नजारा शायद ही किसी अन्य देश की शादियों में देखने को मिलता है। ढोल पर होता भांगड़ा, गिद्दा तथा बैंड की धुन पर ट्विस्ट करते बाराती शादी की मस्ती को चरम सीमा पर पहुंचा देते हैं।

शादी की डेट और वेन्यू तय होते ही लड़के वालों को सबसे पहले बैंड आदि की बुकिंग करा लेनी चाहिए। शादी के बाजार में शायद यही ऐसे लोग हैं, जिनके कोई फिक्स रेट नहीं हैं। बैंड वाले अपने रेट इस बात से तय करते हैं कि आप उनसे कितने आदमियों का बैंड लेंगे और सीजन से कितना पहले आप इन्हें बुक कर रहे हैं। जैसे-जैसे सीजन करीब आता जाएगा, इनके रेट बढ़ते जाएंगे। दिल्ली स्टेट बैंड एसोसिएशन के सचिव व मास्टर बैंड के प्रमुख संजय शर्मा के अनुसार- ‘दिल्ली में सालभर में शादियों के मुहूर्त्त कुल 30 से 35 तक ही होते हैं और बैंड बजाने वाले कलाकार भी लिमिटेड ही हैं, ऐसे में सीजन के समय आदमियों के रेट बढ़ जाते हैं।’

पहले बैंड वाले और घोड़ी, लाइट्स और बग्घी वाले अलग हुआ करते थे। आजकल बैंड वाले ही सारी पार्टियों के साथ तालमेल बना कर काम करते हैं।

बैंड पार्टी 11, 21 या 31 आदमियों की होती है। इसका खर्चा प्रति व्यक्ति 500 रुपये तक आता है, जो सीजन करीब आने पर दोगुना हो जाता है। अच्छी बैंड पार्टी हर सीजन में नई वर्दियां और धुनें तैयार करती हैं और बुकिंग पार्टी को इसकी चॉइस भी देती हैं। बुकिंग में घुड़चड़ी और विदा का काम भी शामिल रहता है। फिर भी बुकिंग करते समय यह बातें खोल लें। इनका कुल खर्चा 11,000 से लेकर 31,000 रुपये तक आता है।

घोड़ी का खर्चा 1000 से 3,000 तक और 2 घोड़ों वाली बग्घी की बुकिंग तो 5000 रुपये में हो जाती है, मगर बग्घी पर होने वाली फूलों की सजावट का खर्चा अलग होता है। लोग अपने टेस्ट के अनुसार 5000 से 20000 रुपये तक की फूलों की सजावट करवाते हैं। ढोल मास्टर 500 से 1000 रुपये तक में बुक हो जाता है। लाइटिंग में जैनेरेटर के साथ 4000 से 10,000 रुपये तक का रेट चल रहा है। इनमें भी आदमियों की गिनती के हिसाब से रेट होते हैं।

(यह लेख हिंदुस्तान के दिसंबर के अंक में प्रकाशित हुआ है)

ताकि शादी हो पिक्चर परफेक्ट
सुबोध भारतीय
First Published:14-12-10 05:06 PM
Last Updated:14-12-10 05:07 PM
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शादी तय होने के बाद दूल्हा-दुल्हन के करीबी लोग तो शादी के आयोजन में जुट जाते हैं, मगर दूल्हा-दुल्हन के जिम्मे सबसे बड़ा काम रह जाता है-अपने लिए परिधान के चयन का। दोनों चाहते हैं कि इस शुभ मौके पर अपने करीबी और मेहमानों के बीच ऐसी पोशाक पहनें, जिससे उनका अंदाज और टेस्ट उसमें झलके और उनकी शादी के दिन सबकी नजर बस उन दोनों पर टिकी रहे। आइए जानें, आजकल क्या नया चल रहा है वेडिंग फैशन में:

दूल्हे की पोशाक और एक्सेसरीज

नब्बे के दशक से दूल्हों की मुख्य ड्रेस शेरवानी बन गई है। कल्पना कीजिए दूल्हा एक नॉर्मल सूट पहने है और उसके साथ दुल्हन एक भारी-भरकम लहंगा पहने खड़ी है। यह मिस मैच हो जाएगा, इसलिए शेरवानी दूल्हे के लिए उतनी ही महत्त्वपूर्ण बनती जा रही है, जितना दुल्हन के लिए लहंगा।

दिल्ली के प्रसिद्ध ग्रूम फैशन रिटेल चेन दीवान साहब के सुमित दीवान के अनुसार, ‘अब शेरवानी के बिना दूल्हे की कल्पना भी मुश्किल है।’ शेरवानी में क्रीम, फॉन, गोल्डन जैसे शेड्स प्रचलन में हैं। इनमें जरदोजी, ऊसरी और स्टोन का काम किया जाता है। साटन फैब्रिक इस समय ट्रैंड में है। वैसे फोर वूल, सिल्क और पॉलिस्टर की भी शेरवानियां बनवाई जा रही हैं। अगर आपके पास पैसे और समय की कमी नहीं है तो आप अपनी मर्जी का ऐसा कपड़ा भी बनवा सकते हैं, जिसमें आपका नाम बुना गया हो या आपका अपना पसंदीदा डिजाइन उस पर बना हो। अगर आप अपना यह शौक पूरा करना चाहते हैं तो आपको ज्यादा पैसा खर्च करने के लिए भी तैयार रहना होगा। शेरवानी की प्राइज रेंज 12,000 रुपये से शुरू होकर दो लाख रुपये तक है। महंगी शेरवानियों में डायमंड का भी इस्तेमाल किया जाता है। कुछ नया स्टाइल पहनने की इच्छा रखने वालों के लिए इंडो-वेस्टर्न एक अच्छा विकल्प है। इसमें शेरवानी की ऊंचाई छोटी कर दी जाती है और साथ में कम मोरी वाली पैंट पहनी जाती है। इसकी प्राइज रेन्ज भी शेरवानी के मुकाबले कम होती है। यह बारह हजार से नब्बे हजार के बीच उपलब्ध है। शेरवानी और इंडो-वेस्टर्न में एक दूसरा फर्क यह है कि शेरवानी के साथ जूतियां पहनी जाती हैं, जबकि इंडो-वेस्टर्न के साथ जूते। कुछ वेडिंग स्टोर्स इंडो-वेस्टर्न में फर्नीशिंग फैब्रिक भी इस्तेमाल कर रहे हैं।

दूल्हे के परिधान के साथ अन्य चीजें मिल कर उसकी पूरी रौनक बनाती है, जैसे जूतियां, सेहरा आदि। शेरवानी के कपड़े का इस्तेमाल करके मैचिंग जूतियां बनाई जाती हैं। इनमें बिना तुर्रे और तुर्रेदार जूतियों के अलावा पिशौरी जूतियां भी फैशन में हैं। पिशौरी जूतियां पीछे से खुली होती हैं, जिससे दूल्हे को आराम रहता है। जूतियों में वैसे राजस्थानी स्टाइल ही चलता है। जूतियों के अलावा सेहरे पर लगने वाली कलगी भी दूल्हे की रौनक बढ़ाती है। इसकी प्राइज रेंज 200 रु. से 1200 रु. तक होती है। इंडो-वेस्टर्न ड्रेस के साथ प्वॉइंटेड शूज लेटेस्ट ट्रेंड है। जूतियों की प्राइज रेंज 1400 से 3000 तक है, जबकि सेहरा 3100 से 11000 रुपये तक मिल जाता है।

दुल्हन के लिए खास

दुल्हन की ड्रेस पूरी शादी में आकर्षण का सबसे बड़ा केन्द्र होती है। किसी भी दुल्हन की हसरत होती है शादी का खूबसूरत जोड़ा। बॉम्बे सेलेक्शन के प्रदीप सूरी के अनुसार दुल्हन के लहंगे के कई विकल्प आजकल की शादियों में नजर आते हैं। क्रेप, नेट, जॉर्जेट और डय़ूपिन सिल्क के फैब्रिक हैं, जो लहंगा बनाने में इस्तेमाल किए जा रहे हैं। दुल्हन पर लाल रंग ही फबता है। यही वजह है कि लाल, मेरून, मजेंटा और गाजरी रंग कभी फैशन से आउट नहीं होते। यदि दुल्हन कुछ अलग रंग पहनना चाहे तो पिंक और फिरोजी रंग चुने जा सकते हैं। इन लहंगों पर डायमंड, स्टोन्स, सीक्वेन्स और गोटा पट्टी का काम होता है। जरदोजी और कटवर्क भी ट्रैंड में हैं।

लहंगे दुल्हन की पसंद और शरीर की बनावट के अनुसार तैयार किए जाते हैं। इन दिनों तीन तरह के कट ट्रैंड में हैं- फिश कट, ए कट और अम्ब्रेला कट। फिश में लहंगा बॉडी की बनावट के अनुसार बनाया जाता है, ए-कट वाला लहंगा ऊपर से फिट और नीचे से खुला होता है। अम्ब्रेला कट में घुमावदार बड़ा-सा लहंगा होता है, जो राजस्थानी अंदाज में बना होता है। फ्रंटियर बाजार के प्रवीन शर्मा के अनुसार लहंगे की रेन्ज 30,000 से शुरू होकर 5-6 लाख तक जा सकती है।

(यह लेख हिंदुस्तान के १४ दिसंबर के अंक में प्रकाशित हुआ है)

Wednesday, December 1, 2010

प्लानिंग मस्त, वेडिंग मदमस्त
सुबोध भारतीय
First Published:29-11-10 01:02 PM
Last Updated:29-11-10 01:04 PM

First Published: 29-11-10 01:02 PMLast Updated:29-11-10 01:04 PM

सुबोध भारतीय
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हमारे देश में शादी-ब्याह का आयोजन एक ऐसे फेस्टिवल की तरह होता है, जो कई दिनों तक चलता है। शादी के आयोजन का मतलब ही उत्साह, उल्लास और आनंद होता है और यह मजा लेने के लिए आपको सही प्लानिंग करनी होगी। कैसे करें प्लानिंग, बता रहे हैं सुबोध भारतीय
रिश्ते की शुरुआत
किसी भी शादी की शुरुआत लड़का-लड़की को पसंद करवा कर संबंध जोड़ने से होती है। पहले आपसी लोगों के संबंध और संपर्कों के माध्यम से यह काम होता था, अब शादी व रिश्तों की वेबसाइट्स और अखबारों में मेट्रोमोनियल विज्ञापनों के जरिये रिश्ते ढूंढ़े जा रहे हैं। नेट से लड़का-लड़की के प्रोफाइल व फोटोज का आदान-प्रदान करना काफी सुविधाजनक हो गया है। सोशल नेटवर्किग साइट्स के जरिये भी यह काम हो रहा है।
रिश्ते को आगे बढ़ाने की अगली सीढ़ी लड़का-लड़की को आपस में मिलवा कर पसंद करवाने की है। इसके लिए स्थान का चयन महत्त्वपूर्ण है। पहले लड़की दिखाने के लिए मंदिर और पार्कों का इस्तेमाल होता था, अब इसकी जगह रेस्टोरेंट अथवा मॉल्स के फूड कोर्ट ने ले ली है। यहां दोनों के परिवारीजन आराम से बैठ कर एक दूसरे से परिचय बढ़ाते हैं और लड़का-लड़की को अलग टेबल पर तसल्ली से बातचीत करने के लिए छोड़ देते हैं। ऐसे में मेजबानी का दायित्व लड़की वाले ही उठाते हैं। कन्या पक्ष को हमारा सुझाव है कि वह मेहमानों की खातिरदारी दिल से करें, मगर इतना ज्यादा और आग्रहपूर्वक न करें कि वर पक्ष को उसका दबाव महसूस हो और वह सहज अनुभव न कर पाएं। इसी प्रकार वर पक्ष को चाहिए कि इस पहली मुलाकात में कन्या पक्ष का कम से कम खर्चा करवायें, ताकि यदि उन्हें इस रिश्ते से इंकार भी करना पड़े तो झिझक न हो। रिश्ता तय करते समय लड़का ही नहीं, लड़की से भी खुल कर सहमति लेनी आवश्यक है, आखिर दोनों को जीवनभर साथ निभाना है। दोनों की सहमति मिल जाने पर परिवारीजन लड़का या लड़की से अलग से बातचीत करके अपनी तसल्ली करें।
रिश्ता तय होने के बाद
लड़का-लड़की पसंद हो जाने के बाद सबसे पहला कार्य शादी की शुभ तारीख तय करने का होता है। इसमें दोनों पक्षों को अपने-अपने पंडितों आदि की राय ले लेनी चाहिए। यदि शुभ मुहुर्त्त एक से अधिक तारीखों का हो तो ऐसी तारीख चुनें, जिसमें ज्यादा शादियां न हों, क्योंकि ऐसा होने पर मेहमानों की संख्या कम रह जाती है। और ऐसे दिनों में सड़कों पर भी भीड़ अधिक होने से मेहमानों को आने में असुविधा भी होती है।
विवाह की तारीख तय हो जाने पर कुछ कार्य आपको सबसे पहले निबटाने होंगे, जैसे शादी के समारोहों के वेन्यू की बुकिंग, क्योंकि दिल्ली में आबादी बढ़ने के साथ ही अब अच्छे फार्म हाउस, बैंक्वेट हॉल्स और पंडालों की बुकिंग मुश्किल और महंगी होती जा रही है। देर से बुकिंग करने पर आपके पास च्वाइस ही नहीं रह जाती, इसलिए तारीख तय होते ही सबसे पहले वेन्यू की बुकिंग का कार्य करें।
इसी प्रकार से बैंड बाजे, ढोल, घोड़ी, बग्घी आदि की भी बुकिंग जल्द से जल्द करा लेनी चाहिए। क्योंकि जैसे-जैसे शादियों का सीजन करीब आने लगता है, इनके दाम भी दिन दूने रात चौगुने बढ़ने लगते हैं।
इसके बाद आप अपने उन मेहमानों की लिस्ट बनाएं, जिन्हें आप शादी में बुलायेंगे। इन्हें चार भागों में बांट लें- 1. रिश्तेदार, 2. मित्र, 3. पड़ोसी, 4 व्यवासायिक सहयोगी।
ऐसा करने से आप सभी मेहमानों की लिस्ट कवर कर पाएंगे। दूर-दराज से आने वाले रिश्तेदारों-मेहमानों को कार्ड छपने से पहले ही सूचना दे दें, ताकि वे अपनी तैयारी समय से कर सकें। उनके आगमन की पुष्टि भी अवश्य कर लें, ताकि आप उनके ठहरने आदि की उचित व्यवस्था कर पायें। मेहमानों की लिस्ट बनाते समय उनके आगे आने वाले संभावित सदस्यों की संख्या भी लिखते जाएं, ताकि आपको अपने मेहमानों की उचित संख्या का अंदाजा हो जाए। ऐसा करने से आपको व्यवस्था करने में बहुत आसानी होगी।
रिश्ता तय करते समय क्या देखें
यदि रिश्ता तय करते समय दोनों पक्षों को भली प्रकार जानने वाला व्यक्ति मध्यस्थ हो तो बेहतर होगा। दोनों पक्ष एक दूसरे पर भरोसा रख पाएंगे।
नेट या अखबार के विज्ञापनों के जरिये रिश्ता करने से पहले अड़ोस-पड़ोस से परिवार के बारे में जानकारी अवश्य लें। वैसे कई प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसियां भी दस से पंद्रह हजार रुपये लेकर यह जानकारी उपलब्ध कराती हैं।
लड़की दिखाने से पहले वर पक्ष का घर देखना चाहिए कि जिस घर में लड़की जाकर रहेगी, वह उनके स्तर और पसंद का है अथवा नहीं।
लड़की को प्राइवेट में पहली बार देखते समय वर पक्ष सिर्फ उन्हीं लोगों को लेकर जाए, जिनकी राय इस रिश्ते को कराने में मायने रखती है।
कन्या पक्ष लड़की दिखाते समय अनावश्यक दिखावा न करे और न ही कोई ऐसा झूठ बोले, जिसे आगे निभाना मुश्किल हो। मेहमाननवाजी भी हैसियत के अनुसार करें।
लड़की को चाहे वेस्टर्न कपड़े पहनाएं अथवा साड़ी-सूट, मगर वे सुरुचिपूर्ण होने चाहिए। अनावश्यक हैवी मेकअप न करवाएं।
लड़का-लड़की को स्वतंत्र रूप से बात करने के लिए अलग से स्थान व भरपूर समय दें।
लड़की या लड़के से परिवारीजन अनावश्यक सवाल-जवाब करके उन्हें असहज न करें। रेस्तरां या पब्लिक प्लेस पर बैठे हुए ऐसे स्वर में बात न करें कि आस-पास बैठे लोगों का ध्यान आप पर ही लगा रहे।
रिश्ते पर पूर्ण सहमति मिलने से पूर्व यदि लड़का-लड़की एक बार फिर मिलना चाहें तो उन्हें ऐसा करने दें।
यदि आप जन्मपत्री आदि मिलाने में यकीन रखते हैं तो यह कार्य लड़का-लड़की देखने से पहले ही कर लें।
लड़का-लड़की में से यदि कोई मांगलिक है तो यह बात पहले बता देनी चाहिए। बाद में पता चलने पर मन में वहम आते हैं तथा रिश्तों में खटास पैदा हो सकती है।
लड़का-लड़की को एक दूसरे की पसंद जान लेना भी आवश्यक है। उदाहरणार्थ लड़का घूमने-फिरने का शौक रखता है और लड़की को घर में रहना पसंद है तो आगे वैवाहिक जीवन में सामंजस्य बनाना मुश्किल हो सकता है।
लड़का-लड़की का कोई भी शारीरिक दोष या बीमारी भी पहले से खुल कर बता देनी चाहिए। बाद में यह बात खुलने पर रिश्तों में कड़वाहट या तनाव पैदा हो सकता है।
लड़कों के ड्रिंक करने या नॉनवेज खाने की बात पहले ही बता देनी चाहिए। कई लड़कियां ड्रिंक करने वाले लड़कों के साथ असहज महसूस करती हैं और शादी के बाद ऐसे लोगों के सोशल सर्कल में मूव नहीं कर पातीं।

Monday, November 15, 2010

ईको फ्रैंडली फर्नीचर भा जाए, छा जाए
सुबोध भारतीय
First Published:15-11-10 05:15 PM
Last Updated:15-11-10 05:15 PM
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देखा जाए तो ज्यादातर घरेलू फर्नीचर के निर्माण में लकड़ी का ही प्रयोग किया जाता है, जो सीधे-सीधे पर्यावरण को क्षति पहुंचाता है। इसके निर्माण में मशीनों का प्रयोग और इसकी पॉलिश आदि में जिन-जिन रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है, वे और भी पर्यावरण विरोधी हैं। इसलिए अब जागरूक व्यक्ति ईको फ्रैंडली फर्नीचर का चयन करके पर्यावरण-रक्षा में सहयोग दे रहे हैं।

क्या है ईको फ्रैंडली फर्नीचर
ऐसा फर्नीचर - जिसके निर्माण के लिए पेड़ों को न काटा जाए, ऐसे कैमिकल इस्तेमाल न किए जाएं, जो टॉक्सिक हैं और ऐसे पदार्थो का प्रयोग किया जाए, जो री-साइकल किए जा सकते हों- ईको फ्रैंडली फर्नीचर कहलाता है।

औद्योगिक और घरेलू वेस्ट को री-साइकल करके ईको फ्रैंडली फर्नीचर बनाया जाता है। केन, बांस और सरकंडे का उपयोग करके सुन्दर फर्नीचर बनाया जा रहा है, जो कहीं भी पर्यावरण को क्षति नहीं पहुंचाता। इनका उत्पादन प्रकृति बहुत बड़ी मात्र में और तेजी से करती है। असम, नागालैंड और उत्तराखंड में केन, बांस और सरकंडों की फसल भारी मात्र में होती है और यह वहां के लाखों लोगों की जीविका का साधन भी है। इस्पात, ग्लास, स्टोन और प्लास्टिक वो मैटीरियल हैं, जो आसानी से री-साइकल किए जा सकते हैं।

कैसे करें इनका चयन
अब बाजार में ईको-फ्रैंडली फर्नीचर आसानी से उपलब्ध है। फर्नीचर में वुड का जो भी विकल्प है, वह पर्यावरण रक्षक है-मसलन एमडीएफ (मीडियम डेंसिटी फाइबर बोर्ड) देखने में एकदम लकड़ी जैसा लगता है, बल्कि उसकी फिनिश लकड़ी से भी अच्छी होती है। कम्प्यूटर टेबल से लेकर सम्पूर्ण किचन तक एमडीएफ से बनाई जा रही हैं। यह विविध रंगों और आकार में उपलब्ध है। इसमें पॉलिश की भी जरूरत नहीं पड़ती। बाजार में इसकी बेशुमार वैरायटी उपलब्ध है।

इसी प्रकार बेंत, बांस और सरकंडे से बना फर्नीचर भारतीय संस्कृति में हमेशा रचा-बसा रहा है और इसका निर्माण भी गांव-देहातों में ही किया जाता था। मगर पिछले एक-दो दशकों से शहरों में इस प्रकार का फर्नीचर आसानी से मिलने लगा है। केन फर्नीचरकी वैरायटी ड्राइंग रूम के सोफा सेट, सेंटर टेबल से लेकर बैडरूम फर्नीचर तक उपलब्ध है। इस फर्नीचर की पॉलिश में ऐसे किसी भी कैमिकल या पेंट का इस्तेमाल प्राय: नहीं किया जाता, जो पर्यावरण को दूषित करे। बल्कि केन और बैम्बू फर्नीचर की पॉलिश-पेंट आप स्वयं भी कर सकते हैं। यह फर्नीचर परंपरागत व मॉडर्न दोनों प्रकार के डिजाइनों में उपलब्ध है। फर्नीचर के अतिरिक्त इनसे मैचिंग लैम्प शेड्स, झूमर, वॉल हैंगिंग आदि एक्सेसरीज भी आसानी से मिल जाती हैं।

रॉट आयरन का फर्नीचर भी ईको फ्रैंडली है, क्योंकि यह री-साइकल किया जा सकता है। केन और रॉट आयरन का कॉम्बिनेशन फर्नीचर को एक नई खूबसूरती तो देता ही है, टिकाऊ और मजबूत भी बना देता है। इसमें स्टोन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

बाजार में अब रॉट आयरन, बेंत, बांस और स्टोन से बना विदेशी फर्नीचर भी आ गया है, जिसकी खूबसूरती और फिनिश लाजवाब है। दाम भी ज्यादा नहीं, अफोर्डेबल हैं। चीन, मलेशिया और इंडोनेशिया ऐसे देश हैं, जिनका ईको फर्नीचर जग प्रसिद्ध है।

ईको-फर्नीचर के साथ जूट फैब्रिक या जूट मैट्स का कॉम्बिनेशन आपके ड्राइंग रूम के ईको-फ्रैंडली लुक में चार चांद लगा देगा। इसी प्रकार सोफे की सीट की बुनाई में जूट की रस्सी का इस्तेमाल किया जा सकता है।

कहां मिलते हैं ये फर्नीचर
-क्राफ्ट म्यूजियम, प्रगति मैदान, भैरों मार्ग, नई दिल्ली
-हैंडीक्राफ्ट एम्पोरियम, जनपथ, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली
-सभी राज्यों के एम्पोरियम, बाबा खड़क सिंह मार्ग, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली
-पुल मिठाई, आजाद मार्केट, दिल्ली (केन फर्नीचर की होलसेल मार्केट है)
-कीर्ति नगर (विदेशी ईको-फ्रैंडली फर्नीचर के लिए)

लाभ
-ईको फ्रैंडली फर्नीचर लकड़ी के फर्नीचर की तुलना में सस्ते हैं।
-इनके निर्माण की प्रक्रिया सरल है और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाती।
-ये वजन में हल्के होते हैं और आसानी से इन्हें पुनव्र्यवस्थित किया जा सकता है।
-इनकी मेंटेनेन्स आसान है और हर साल पॉलिश करवाने की जरूरत नहीं होती।
-परंपरागत और मॉडर्न दोनों प्रकार के डिजायनों में इनकी वैरायटी उपलब्ध है-होम इंटीरियर के लिए भी और आउटडोर गार्डन तथा लॉबी के लिए भी।
-सस्ते होने की वजह से इस फर्नीचर को बदलना जेब और दिल को तकलीफ नहीं देता।
-चार पांच साल में इसे बदल कर आप अपने घर को एक नया लुक दे सकते हैं।

साज-संभाल
-ईको फ्रैंडली फर्नीचर की यदि हर रोज झाड़-पोंछ की जाए तो यह सदा नया जैसा दिखेगा।
-ये वजन में हल्का होता है और इसलिए इसे समय-समय पर री-अरेंज करके ड्राइंग रूम की लुक बदल सकते हैं।
-टैराकोटा के गमलों में इंडोर प्लांट के साथ इस फर्नीचर का संयोजन घर के ईको फ्रैंन्डली लुक में चार चांद लगा देगा।
-केन और बांस के फर्नीचर को आप अपनी पसंद अनुसार डिजाइन भी करवा सकते हैं। इसके लिए होल सेल मार्केट जाएं।
-इन्हें टिकाऊ और मजबूत बनाने के लिए केन के साथ रॉट आयरन और स्टोन का भी इस्तेमाल करें।

(यह लेख हिंदुस्तान दैनिक के १६ नवम्बर के अंक में प्रकाशित हुआ है)

ईको फ्रैंडली फर्नीचर भा जाए, छा जाए
सुबोध भारतीय
First Published:15-11-10 05:15 PM
Last Updated:15-11-10 05:15 PM
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देखा जाए तो ज्यादातर घरेलू फर्नीचर के निर्माण में लकड़ी का ही प्रयोग किया जाता है, जो सीधे-सीधे पर्यावरण को क्षति पहुंचाता है। इसके निर्माण में मशीनों का प्रयोग और इसकी पॉलिश आदि में जिन-जिन रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है, वे और भी पर्यावरण विरोधी हैं। इसलिए अब जागरूक व्यक्ति ईको फ्रैंडली फर्नीचर का चयन करके पर्यावरण-रक्षा में सहयोग दे रहे हैं।

क्या है ईको फ्रैंडली फर्नीचर
ऐसा फर्नीचर - जिसके निर्माण के लिए पेड़ों को न काटा जाए, ऐसे कैमिकल इस्तेमाल न किए जाएं, जो टॉक्सिक हैं और ऐसे पदार्थो का प्रयोग किया जाए, जो री-साइकल किए जा सकते हों- ईको फ्रैंडली फर्नीचर कहलाता है।

औद्योगिक और घरेलू वेस्ट को री-साइकल करके ईको फ्रैंडली फर्नीचर बनाया जाता है। केन, बांस और सरकंडे का उपयोग करके सुन्दर फर्नीचर बनाया जा रहा है, जो कहीं भी पर्यावरण को क्षति नहीं पहुंचाता। इनका उत्पादन प्रकृति बहुत बड़ी मात्र में और तेजी से करती है। असम, नागालैंड और उत्तराखंड में केन, बांस और सरकंडों की फसल भारी मात्र में होती है और यह वहां के लाखों लोगों की जीविका का साधन भी है। इस्पात, ग्लास, स्टोन और प्लास्टिक वो मैटीरियल हैं, जो आसानी से री-साइकल किए जा सकते हैं।

कैसे करें इनका चयन
अब बाजार में ईको-फ्रैंडली फर्नीचर आसानी से उपलब्ध है। फर्नीचर में वुड का जो भी विकल्प है, वह पर्यावरण रक्षक है-मसलन एमडीएफ (मीडियम डेंसिटी फाइबर बोर्ड) देखने में एकदम लकड़ी जैसा लगता है, बल्कि उसकी फिनिश लकड़ी से भी अच्छी होती है। कम्प्यूटर टेबल से लेकर सम्पूर्ण किचन तक एमडीएफ से बनाई जा रही हैं। यह विविध रंगों और आकार में उपलब्ध है। इसमें पॉलिश की भी जरूरत नहीं पड़ती। बाजार में इसकी बेशुमार वैरायटी उपलब्ध है।

इसी प्रकार बेंत, बांस और सरकंडे से बना फर्नीचर भारतीय संस्कृति में हमेशा रचा-बसा रहा है और इसका निर्माण भी गांव-देहातों में ही किया जाता था। मगर पिछले एक-दो दशकों से शहरों में इस प्रकार का फर्नीचर आसानी से मिलने लगा है। केन फर्नीचरकी वैरायटी ड्राइंग रूम के सोफा सेट, सेंटर टेबल से लेकर बैडरूम फर्नीचर तक उपलब्ध है। इस फर्नीचर की पॉलिश में ऐसे किसी भी कैमिकल या पेंट का इस्तेमाल प्राय: नहीं किया जाता, जो पर्यावरण को दूषित करे। बल्कि केन और बैम्बू फर्नीचर की पॉलिश-पेंट आप स्वयं भी कर सकते हैं। यह फर्नीचर परंपरागत व मॉडर्न दोनों प्रकार के डिजाइनों में उपलब्ध है। फर्नीचर के अतिरिक्त इनसे मैचिंग लैम्प शेड्स, झूमर, वॉल हैंगिंग आदि एक्सेसरीज भी आसानी से मिल जाती हैं।

रॉट आयरन का फर्नीचर भी ईको फ्रैंडली है, क्योंकि यह री-साइकल किया जा सकता है। केन और रॉट आयरन का कॉम्बिनेशन फर्नीचर को एक नई खूबसूरती तो देता ही है, टिकाऊ और मजबूत भी बना देता है। इसमें स्टोन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

बाजार में अब रॉट आयरन, बेंत, बांस और स्टोन से बना विदेशी फर्नीचर भी आ गया है, जिसकी खूबसूरती और फिनिश लाजवाब है। दाम भी ज्यादा नहीं, अफोर्डेबल हैं। चीन, मलेशिया और इंडोनेशिया ऐसे देश हैं, जिनका ईको फर्नीचर जग प्रसिद्ध है।

ईको-फर्नीचर के साथ जूट फैब्रिक या जूट मैट्स का कॉम्बिनेशन आपके ड्राइंग रूम के ईको-फ्रैंडली लुक में चार चांद लगा देगा। इसी प्रकार सोफे की सीट की बुनाई में जूट की रस्सी का इस्तेमाल किया जा सकता है।

कहां मिलते हैं ये फर्नीचर
-क्राफ्ट म्यूजियम, प्रगति मैदान, भैरों मार्ग, नई दिल्ली
-हैंडीक्राफ्ट एम्पोरियम, जनपथ, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली
-सभी राज्यों के एम्पोरियम, बाबा खड़क सिंह मार्ग, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली
-पुल मिठाई, आजाद मार्केट, दिल्ली (केन फर्नीचर की होलसेल मार्केट है)
-कीर्ति नगर (विदेशी ईको-फ्रैंडली फर्नीचर के लिए)

लाभ
-ईको फ्रैंडली फर्नीचर लकड़ी के फर्नीचर की तुलना में सस्ते हैं।
-इनके निर्माण की प्रक्रिया सरल है और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाती।
-ये वजन में हल्के होते हैं और आसानी से इन्हें पुनव्र्यवस्थित किया जा सकता है।
-इनकी मेंटेनेन्स आसान है और हर साल पॉलिश करवाने की जरूरत नहीं होती।
-परंपरागत और मॉडर्न दोनों प्रकार के डिजायनों में इनकी वैरायटी उपलब्ध है-होम इंटीरियर के लिए भी और आउटडोर गार्डन तथा लॉबी के लिए भी।
-सस्ते होने की वजह से इस फर्नीचर को बदलना जेब और दिल को तकलीफ नहीं देता।
-चार पांच साल में इसे बदल कर आप अपने घर को एक नया लुक दे सकते हैं।

साज-संभाल
-ईको फ्रैंडली फर्नीचर की यदि हर रोज झाड़-पोंछ की जाए तो यह सदा नया जैसा दिखेगा।
-ये वजन में हल्का होता है और इसलिए इसे समय-समय पर री-अरेंज करके ड्राइंग रूम की लुक बदल सकते हैं।
-टैराकोटा के गमलों में इंडोर प्लांट के साथ इस फर्नीचर का संयोजन घर के ईको फ्रैंन्डली लुक में चार चांद लगा देगा।
-केन और बांस के फर्नीचर को आप अपनी पसंद अनुसार डिजाइन भी करवा सकते हैं। इसके लिए होल सेल मार्केट जाएं।
-इन्हें टिकाऊ और मजबूत बनाने के लिए केन के साथ रॉट आयरन और स्टोन का भी इस्तेमाल करें।

(यह लेख हिंदुस्तान दैनिक के १६ नवम्बर के अंक में प्रकाशित हुआ है)

Wednesday, November 10, 2010

कौन हैं बच्चों के रोल मॉडल्स
सुबोध भारतीय
First Published:10-11-10 05:08 PM
Last Updated:10-11-10 05:40 PM
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11वीं के स्टूडेंट अर्जुन बग्गा अपना रोल मॉडल आमिर खान को मानते हैं। ‘मिस्टर परफेक्शनिस्ट’ आमिर बच्चों में बहुत अच्छी तरह कनेक्ट कर पाते हैं। लगान, तारे जमीन पर और थ्री ईडियट्स में बच्चों को प्रेरित करने के लिए बहुत कुछ था, जो कि दिलचस्प तो था ही, बहुत आसान तरीके से समझाया भी गया था। अजरुन का कहना है-आमिर भले ही कम फिल्में करते हों, मगर उनकी फिल्में मीनिंगफुल और मनोरंजक होती हैं। फिल्म के हीरो आमिर खान को अपनी जिंदगी का हीरो मानने में कोई हर्ज नहीं गर्व होता है।

भारतरत्न डॉ. अब्दुल कलाम भी बहुत-से बच्चों के रोल मॉडल हैं। एक मछुआरे के बेटे कलाम की जिंदगी एक छोटे-से गांव से शुरू हुई थी। अपनी लगन, योग्यता और मेहनत के बल पर वह देश के शीर्षस्थ वैज्ञानिक बने। राष्ट्रपति बनने के बाद बच्चों से ज्यादा जुड़े और सभी बच्चों में लोकप्रिय हो गए। अपने कार्यकाल में तीन लाख स्कूली बच्चों से मिलकर उन्होंने भारत के भविष्य को एक नई संभावना और सोच दी। कलाम अंकल की बच्चों-जैसी मासूम हंसी और सादगी हर बच्चों को अच्छी लगती है।

सचिन तेंदुलकर ऐसे खिलाड़ी हैं, जो देश के ही नहीं, विदेश के भी लाखों बच्चों के रोल मॉडल बने हुए हैं। सचिन की स्कूली पढ़ाई भी पूरी नहीं हो पाई थी कि उन्हें बड़े बच्चों के बीच झोंक दिया गया। सचिन ने यह इम्तिहान तो पास किया, मगर अपने बचपन को खोकर।

11वीं कक्षा के छात्र कौशल को सचिन अपने रोल मॉडल इसलिए लगते हैं, क्योंकि उन्होंने सफलता के शिखर को छूकर भी अपनी शालीनता और गरिमा को बखूबी बनाए रखा है। कभी विवादों में नहीं पड़े। कौशल को बड़ा गर्व होता है जब विम्बलडन के मैदान में सचिन की उपस्थिति की घोषणा होते ही उनके सम्मान में सारे दर्शक खड़े होकर तालियां बजाते हैं। यही सम्मान सचिन ने अपने खेल और गरिमामय व्यवहार से सारी दुनिया की विपक्षी टीमों से भी हासिल किया है।

ऑस्कर जीतकर भारत की शान बढ़ाने वाले संगीतकार एआर रहमान के पिता का निधन उस समय हो गया था जब वह सिर्फ 16 वर्ष के थे। अपने घर को चलाने का बोझ रहमान के नाजुक कंधों पर आ गया। मगर रहमान ने यह बोझ बखूबी उठाया ही नहीं, अपितु अपनी बेजोड़ प्रतिभा से संगीत की दुनिया की परिभाषा ही बदल डाली। यही वजह है कि रहमान आज हजारों-लाखों बच्चों के रोल मॉडल बन चुके हैं। सचिन की ही तरह वह शर्मीले और सिम्पल हैं।

कृतिका गुप्ता को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने रोल मॉडल लगते हैं, जो एक राजनेता न होकर भी एक काबिल और कुशल प्रधानमंत्री हैं। प्रधानमंत्री की योग्यता और सादगी अपने आप में एक मिसाल है। मनमोहन सिंह संभवत: विश्व के एक मात्र प्रधानमंत्री हैं, जो अर्थशास्त्री भी हैं। और यह हमारा सौभाग्य है कि देश की अर्थव्यवस्था और विकास इनके सुरक्षित हाथों में है।

9वीं कक्षा की छात्र प्रिया बत्रा को ब्यूटी और सक्सेस का अद्भुत कॉम्बिनेशन दिखता है-ऐश्वर्या राय बच्चन में। मिस वर्ल्ड बनने के बाद जिस तरह ऐश्वर्या ने खुद को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित किया, वह एक मिसाल है। फिर अपनी अभिनय क्षमता और सुंदरता के बल पर अंतरराष्ट्रीय स्टार बनीं और कई विदेशी फिल्मों में हीरोइन बन देश का नाम ऊंचा किया।

कनिष्क हरभजनका को अमिताभ बच्चन अपने रोल मॉडल लगते हैं। कनिष्क के अनुसार, 68 वर्षीय अमिताभ में युवाओं से भी ज्यादा जोश बरकरार है। उनकी अभिनय क्षमता और गरिमामय उपस्थिति सभी को इम्प्रेस करती है। शायद यही वजह है कि यह बुजुर्ग अभिनेता यंग जनरेशन का रोल मॉडल हैं।

कम्युनिकेशन और टैक्नोलॉजी के इस युग में दुनिया तेजी से सिमटकर करीब आती जा रही है। कोई आश्चर्य ही बात नहीं कि आज बच्चों के रोल मॉडल स्वदेशी ही नहीं विदेशी आइकॉन्स भी बन गए हैं। दुनिया के सबसे धनी व्यक्तियों में शुमार किए जाने वाले बिल गेट्स और वॉरेन बफेट की अकूत संपत्ति से ज्यादा उनका उस संपत्ति के अधिकांश हिस्से को दान और समाज कल्याण के लिए बांटना, इम्प्रेस करता है।

दोस्तों, हमारे जो रोल मॉडल्स हैं, उनकी कहानी विपरीत परिस्थितियों से जूझकर ऊपर उठने की है। चाहे ए।आर. रहमान हों, अब्दुल कलाम या मनमोहन सिंह। इनका बचपन कठिन परिस्थितियों में बीता। ये मुंह में चांदी की चम्मच लेकर पैदा नहीं हुए थे। सच्चे हीरो वही होता है, जो जूझकर, फाइट करके विनर बनता है और दुनिया पर छा जाता है।

( यह लेख दैनिक हिंदुस्तान के ११ नवम्बर के अंक में प्रकाशित हुआ है)

Tuesday, November 2, 2010

घर के मेकओवर को दें फाइनल टच
लाइट्स, डेकोरेशन..एक्शन
सुबोध भारतीय
First Published:01-11-10 12:17 PM
Last Updated:01-11-10 12:19 PM
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रोशनी और खुशियों का त्योहार दीपावली अब आपके दरवाजे तक आ पहुंचा है। बाजार सज गए हैं और लोग खर्च करने के मूड में आ गए हैं। हर तरफ खुशी और उमंग का माहौल है..और क्यों न हो, आखिर दीपावली हमारे देश का सबसे बड़ा त्योहार है। कल धनतेरस के साथ ही दीपावली का पांच दिनों का उत्सव शुरू हो जाएगा।

ऐसे बदलें घर के फर्श और दीवारों का लुक

यदि आप अपने घर को पेंट कराने से चूक गए हैं तो कोई बात नहीं, इसे आप दिवाली के बाद के लिए टाल दीजिए। घर की अच्छी तरह सफाई कीजिए। इस काम को आप वैक्यूम क्लीनर की मदद लेकर जल्दी ही निबटा सकेंगे। घर को फेस्टिवल लुक देने के लिए पैसों से ज्यादा आपको अक्ल का इस्तेमाल करना होगा। आपके पास जो छोटे या मध्यम आकार के फ्लोर रग्स हैं, उन्हें मुख्य दीवारों पर टांग कर आप एक चमत्कारी इफेक्ट पैदा कर सकते हैं। अगर यह रग्स डार्क कलर के हैं तो और भी बेहतर होगा। ऐसा करने से आपके फ्लोर और वॉल्स दोनों का लुक ही बदल जाएगा।

रंगोली दिवाली की सजावट का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। दीवार पर सजावट का एक और ऑप्शन रंगोली सजाने का है। इसमें आजकल बाजार में मिलने वाली रंगोलियां भी इस्तेमाल की जा सकती हैं, जिन्हें दीवार पर चिपका कर नया लुक दिया जा सकता है। घर का मुख्य दरवाजा वंदनवार से जरूर सजाएं, मगर सुरुचिपूर्ण तरीके से, ताकि उससे आपका टेस्ट पता चले। मुख्य द्वार पर रंगोली बनाएं-फर्श का एक छोटा हिस्सा इस्तेमाल करें और गीले चॉक से रंगोली का आकार बनाएं। इसके बाद गुलाल के विभिन्न रंगों और चावलों से उसे सजाएं। चावलों को विभिन्न रंगों में रंग कर भी रंगोली बना सकते हैं।

अच्छा लुक देते हैं ये इनडोर प्लांट्स

घर के प्लांट्स अगर पूरे साल उपेक्षित पड़े रहे हैं तो अब वक्त आ गया है उनसे घर सजाने का। इनडोर प्लांट्स के एक-एक पत्ते को हल्के गीले कपड़े से साफ करें। उनके गमले यदि पुराने और टूट-फूट गए हैं तो बदल डालें। उन्हें खूबसूरत तरीके से पेंट करके एक पर्सनल टच दें। दिवाली के दिनों में ड्राइंग रूम में सजे-संवरे प्लांट्स बाहर के पॉल्यूशन से भी बचे रहेंगे और घर को भी एक अच्छा लुक देंगे।

ड्राइंग रूम में एक खूबसूरत चौड़ा पॉट पानी भर कर उसमें फूलों की खुशबूदार पत्तियां डाल दें। फिर रात्रि के समय उसमें फ्लोटिंग कैंडल्स (तैरने वाले दीये) जला दें। बेहतरीन समां दिखाई देगा।

खूबसूरत व कलात्मक दीये

धनतेरस से ही दीये जलने शुरू हो जाते हैं, जो भाईदूज तक जलाये जाते हैं। मुख्य द्वार और घर के कुछ मुख्य स्थानों पर प्रतिदिन जलने वाले दीये मिट्टी के बने हों और उन पर कुछ पेंट या ड्राइंग कर सजाना एक बेहतर विकल्प है। इन्हें और बढ़िया लुक देने के लिए छोटे-छोटे शीशे या टूटी चूड़ियों को भी चिपका कर अपनी कलात्मक अभिरुचि का परिचय दे
सकते हैं।

फर्नीचर को करें री-अरेंज

घर के फर्नीचर को नया लुक देने के लिए उनको कुछ अलग तरीके से री-अरेंज करना एक बेहतर आइडिया है। इससे आपके ड्राइंग रूम की लुक में एक नयापन आ जाएगा। सोफे के यदि आप कवर नहीं बदल पाए हैं तो कुशन कवर बदलना भी काफी होगा। अगर लिविंग एरिया और डाइनिंग एरिया का आपस में स्थान परिवर्तन हो जाए तो भी एक नया लुक आ जाएगा।

कंडील की जगमगाहट

कंडील का दिवाली की सजावट में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। मुख्य द्वार पर एक छोटी-सी कंडील या लालटेन की जगमगाहट लाजवाब होती है। अंदर ड्राइंग रूम में अच्छे आकार की कंडील सजाने से घर जगमगा उठेगा।

फूलों से सजावट

दीपावली के दिनों में फूलों की सजावट इनडोर में करें। हर रोज नये फ्लावर चुनें। गुलाब, लिली, जैस्मीन के साथ घर में रंगों को बिखेर दें। फूलों के खुशनुमा एहसास का विकल्प कोई भी अन्य चीज नहीं कर सकती।

बनाएं लड़ियों और दीयों का कॉम्बिनेशन

दिवाली रोशनी का त्योहार है और घर के बाहर की शोभा रोशनी से ही होती है। मिट्टी के दीये हर घर में परंपरागत रूप से जलाये जाते हैं। कुछ लोग मोमबत्तियों का भी इस्तेमाल करते हैं। बिजली के बल्बों की लड़ी और दीयों का कॉम्बिनेशन बनाया जा सकता है। इसका इफैक्ट काफी अच्छा होगा।

दिवाली पर गिफ्ट

मिठाइयां दिवाली की सदाबहार गिफ्ट आइटम्स हैं, मगर इन्हें दिवाली पर कई रोज पहले ही बना लिया जाता है, इसलिए दूध या छैने की मिठाइयां खरीदने से बचें। देशी घी से बनी मिठाइयां खरीदें।

मिठाई, नमकीन और बिस्कुट्स के कॉम्बी पैक आजकल काफी लोकप्रिय होने जा रहे हैं। इनके आकार बड़े हैं और दाम छोटे। रसगुल्ला, सोन पापड़ी, गुलाब जामुन, भुजिया, बिस्कुट व पेठे आदि के कॉम्बी बाजार में भरे पड़े हैं।

ड्राई फ्रूट पैक्स दिवाली गिफ्ट के रूप में दिन-ब-दिन लोकप्रिय होते जा रहे हैं। इस बार कई कम्पनियों ने विदेशी काजू, बादाम व पिस्ता के आकर्षक पैक्स बाजार में उतारे हैं। क्वालिटी बेहतरीन है, मगर थोड़ी महंगी है।

बिस्कुट-चॉकलेट का चलन भी बढ़ता जा रहा है, मगर विदेशी पैक्स की एक्सपायरी डेट्स संदेहास्पद रहती हैं। अपने लोकल बेकर से कुकीज बास्केट खरीदना एक अच्छा चयन होगा। हर अच्छे बेकर ने कुकीज और फ्रेश चॉकलेट व केक्स की शानदार वैरायटी निकाली हैं।

परफ्यूम्ड कैंडल्स की बेशुमार वैरायटी मार्केट में आ गई है। दिवाली पर यह अच्छे उपहार के रूप में लोकप्रिय होती जा रही है। कैंडल होल्डर्स भी गिफ्ट किए जाते हैं।

होम लिनेन यानी बैड शीट, कुशन और पिलो कवर्स की स्पेशल वैरायटी दिवाली के दिनों में लॉन्च हुई है और वह भी आकर्षक दामों में। सभी फर्निशिंग स्टोर्स पर इनकी वैरायटी उपलब्ध है।

क्रॉकरी या होम अप्लायंसेज की बहुत अच्छी वैरायटी हर बड़े स्टोर में गिफ्ट पैक के रूप में मौजूद है। इम्पोर्टेड क्रॉकरी खरीदने के लिए गफ्फार मार्केट, करोल बाग से बढ़िया कोई ठिकाना नहीं है।

चांदी-सोने के आयटम्स में सिक्कों के अलावा अब 500-1000 के चांदी के नोट भी ज्वैलर्स के पास उपलब्ध हैं। चांदी-सोने की धार्मिक मूर्तियां और तस्वीरें भी गिफ्ट करने का अच्छा ऑप्शन है।

सूट लेंथ, शर्ट-पैन्ट सेट व रिस्ट वॉच ऐसे उपहार हैं, जो अपने सहयोगियों या वर्कर्स को दिवाली के शुभ मौके पर दिए जा सकते हैं। गारमेंट्स स्टोर्स में इनकी अच्छी वैरायटी उपलब्ध है।

इन सबके अतिरिक्त मेकअप किट्स, ब्यूटी प्रोडक्ट्स और परफ्यूम्स व डिओज के गिफ्ट हैम्पर भी दिवाली पर दिए जाने वाले उपहारों में लोकप्रिय हैं।

घर का लुक बदलने के लिए आसान टिप्स

घर के पायदान बदल कर नए लगाएं।
सोफों के कुशन कवर बदलें।
फर्नीचर को पुनर्व्यवस्थित करें।
मिट्टी के बड़े दीये अपने आप पेंट करके सजाएं।
घर के इनडोर प्लांट्स के गमले पेंट करें।
परदों का कॉम्बिनेशन बदल दें। उन पर कागज के मोटिफ भी लगा सकते हैं।

दिवाली में सजावट के लिए जरूरी

कंडील
फूल
दीये
वंदनवार
रंगोली
लाइटिंग
मोटिफ्स
फ्लोटिंग कैंडल्स

(यह लेख हिंदुस्तान के नवम्बर के अंक में प्रकाशित हुआ है.)

Thursday, October 21, 2010

छोड़ो मस्ती दिखाओ चुस्ती
सुबोध भारतीय
First Published:20-10-10 02:05 PM
Last Updated:20-10-10 02:05 PM
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भरपूर मस्ती, स्कूल से छुट्टी और हर ओर बस खेल की चर्चा। कितना अच्छा वक्त था ना! न सुबह-सुबह वक्त पर स्कूल पहुंचने की टेंशन और न ही स्कूल के बाद टय़ूशन जाने की भागमभाग। पर, अब बहुत हो गई मौज-मस्ती। स्कूल खुल गए हैं और फिर से लौट आया है वही पुराना टाइम-टेबल। अब टाइम-टेबल को फॉलो करना है, स्कूल से लेकर खेल के मैदान तक अव्वल आना है, तो हेल्दी रहना भी तो जरूरी है ना! हेल्दी रहना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। किसी को डेंगू हो रहा है, तो किसी को चिकनगुनिया। साथ में बदलते मौसम की मार। तुम हेल्दी रहो, यह सिर्फ पेरेंट्स की ही जिम्मेदारी नहीं है। कैसे मौज-मस्ती के साथ चुस्त और हेल्दी भी रहा जा सकता है, बता रहे हैं सुबोध भारतीय

कॉमनवेल्थ गेम्स खत्म हो गए और साथ ही खत्म हो गईं दशहरे की लंबी छुट्टियां। इस बार छुट्टियों में बच्चों को धमाल मचाने का शानदार मौका मिला। जिन्हें स्पोर्ट्स में रुचि थी, वे खेल देखने जा सकते थे और जिनके पेरेंट्स इन लंबी छुट्टियों में घर से निकलना चाहते थे, उन्हें मिला सैर-सपाटे के लिए दूर-दराज के इलाकों में जाने का मौका। बच्चों के तो मानो दोनों हाथों में लड्डू थे। पढ़ाई से तो मानो नाता ही टूट गया था और हर तरफ बस धमा-चौकड़ी, मौज-मस्ती और खाना-पीना था। मगर जैसे हर अच्छी चीज का अंत होता है, इन छुट्टियों का भी अंत हुआ और बच्चों की वही दुनिया शुरू हो गई, सुबह 6 बजे से।

पर, अब आपको एक चीज का ख्याल रखना होगा-बदलते मौसम का। दिन छोटे होने लगे हैं और रातें बड़ी। दिन में गरमी लगती है और रात को पंखा भी धीमा करना पड़ता है। मच्छरों की तो न जाने कितनी किस्में पैदा हो गई हैं। हर रोज डेंगू, चिकनगुनिया और वायरल फीवर के केस सुनने को मिल रहे हैं और सबसे चिंता की बात यह है कि बच्चे भी इन रोगों के शिकार हो रहे हैं। अगर थोड़ी-सी सावधानी बरती जाए तो इन रोगों से और मच्छरों से बचा जा सकता है।

टी-शर्ट और निक्कर पहनना किस बच्चे को अच्छा नहीं लगता? मगर मच्छरों को भी यह अच्छा लगता है और वह आसानी से उन बच्चों को अपना शिकार बनाते हैं, जो ऐसे कपड़े पहनते हैं। डेंगू, चिकनगुनिया आदि रोग मच्छरों के काटने से ही होते हैं। खेलकर आने के बाद पसीने से भीगे हुए बच्चे अभी भी फ्रिज का ठंडा पानी पीकर अपना गला खराब कर लेते हैं। गला खराब होता है और फिर फीवर की बारी आती है और उसके बाद हो जाती है स्कूल से अनचाही छुट्टी। इतनी लंबी छुट्टियों के बाद दोबारा छुट्टी करने का मतलब-क्लास में पीछे रह जाना और पढ़ाई का नुकसान।

प्रसिद्ध होम्योपैथी डॉक्टर अनीता यादव का कहना है- ‘इन दिनों दिन और रात के तापमान में काफी अंतर आ चुका है। खांसी, जुकाम और एलर्जी की शिकायतें बच्चों में कॉमन हो गई हैं। इसका कारण है हमारे शरीर में इन दिनों विटामिन-सी की कमी हो जाती है। इसलिए इन दिनों में बच्चों को नींबू-पानी, मौसमी, संतरा आदि निरंतर लेना चाहिए, जो विटामिन-सी के सबसे अच्छे स्नोत हैं। विटामिन सी से आपकी त्वचा भी हेल्दी रहेगी।

हेल्दी लाइफ के लिए हेल्दी खाना

मौसम चाहे कोई भी हो, हेल्दी रहने और बीमारियों से दूर रहने के लिए अच्छा और पौष्टिक खाने से बेहतर कोई और उपाय नहीं है। कभी-कभार पित्जा-बर्गर खाना ठीक है, पर इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए ऐसी डाइट लें जो आपके इम्यून सिस्टम को मजबूत बना सके। तभी तो तुम हेल्दी रहोगे और हर फील्ड में आओगे अव्वल।

आजकल के बच्चे स्मार्ट भी हैं और अपनी हेल्थ का ख्याल भी रखना जानते हैं। इन टिप्स को अपनाने से आप हेल्दी रह सकते हैं।

बदलते मौसम को देखते हुए फ्रिज का ठंडा पानी पीना एकदम छोड़ दें और घर के एसी को अगली गर्मियों तक की छुट्टी दे दें।

मच्छर इन दिनों आतंकवादी बन गए हैं और इस मौसम में सबसे ज्यादा एक्टिव रहते हैं। इनसे बचने के लिए कोशिश करें कि पूरी बाजू की शर्ट और पैंट पहनें। यदि ऐसा करना संभव न हो तो मच्छरों से बचाने वाली क्रीम को खुले अंगों पर लगा लें।

शाम 5 से 6 बजे के बीच मच्छर घरों में घुस जाते हैं। इस दौरान घर का कोई भी दरवाजा-खिड़की खुला ना रखें।

कम-से-कम एक महीने के लिए आउटडोर गेम्स को छोड़ दें, मच्छरों से बचाव रहेगा। बदलते मौसम के असर से भी बचेंगे।

इस मौसम में भूख बढ़ जाती है, मगर इसका मतलब यह नहीं कि जंक फूड जैसे पित्जा, बर्गर या समोसा ही खाया जाए। हेल्दी और पोषक तत्त्वों से भरपूर खाना खाएं।

अब आखिर में एक मजेदार बात-आजकल सुबह का मौसम सबसे खुशगवार है। जो बच्चे मॉर्निग वॉक या एक्सरसाइज शुरू करना चाहते हैं, उनके लिए इससे बढ़िया मौसम कोई नहीं हो सकता। सुबह या शाम किसी भी समय एक्सरसाइज और वॉक करने का सुहाना मौसम है ये।

(यह लेख दैनिक हिंदुस्तान में २१ अक्टूबर को प्रकाशित हुआ है)

Tuesday, October 12, 2010

आपका टेस्ट और स्टाइल दर्शाती फ्लोरिंग टाइल्स
सुबोध भारतीय
First Published:12-10-10 12:13 PM
Last Updated:12-10-10 12:15 PM
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टाइल्स की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण इनका किफायती और सुविधाजनक होना है। फ्लोर टाइल्स का चलन इसलिए बढ़ता जा रहा है, क्योंकि पत्थर (स्टोन) के मुकाबले इन्हें बिछाना आसान होता है। पॉलिश करवाने का कोई झंझट नहीं और डिजाइन व रंगों की इतनी अधिक च्वाइस उपलब्ध है, जो कि स्टोन में नहीं है।

इस बारे में ला सरोजिका के इंटीरियर डिजाइनर सौरभ वार्ष्णेय बताते हैं, ‘टाइल्स के बिना हम किसी भी घर, होटल या रेस्टोंरेंट को सजाने की कल्पना भी नहीं कर सकते। बाजार में उपलब्ध वैरायटी की रेंज इतनी अधिक है कि ग्राहक खुद निर्णय नहीं कर पाता कि किसे चुने और अंतत: सारा काम हमारी कल्पनाशीलता पर ही छोड़ दिया जाता है। टाइल्स के संबंध में अच्छी बात ये भी है कि फर्श का लुक बदलने के लिए बेकार की तोड़फोड़ की कोई जरूरत नहीं पड़ती। कैमिकल से थोड़े समय में टाइल्स बिछाना और लगाना एक अच्छा और आसान विकल्प है।’

टाइल्स का बाजार अब भारतीय टाइल्स निर्माताओं पर ही निर्भर नहीं रह गया है। चाइनीज टाइल्स धीरे-धीरे भारतीय बाजारों में अपनी पैठ बनाती जा रही हैं। सस्ती होने के कारण सीमित बजट वाले ग्राहक इन्हें पसंद करते हैं। हालांकि इस सच्चाई को भी झुठलाया जा नहीं सकता कि बहुत सी भारतीय कंपनियां चीन से टाइल्स आयात कर उस पर अपना ठप्पा लगा कर बेच रही हैं। स्टाइल और हर चीज में अपना डिफरेंट टेस्ट रखने वाले ग्राहकों को इटैलियन और स्पेनिश टाइल्स पसंद आती हैं। इनके रंग और डिजाइन अनूठे हैं, लेकिन यह चुनिंदा शो रूम्स पर ही उपलब्ध हैं। सेरेमिक और वैट्रीफाइड टाइल्स अब साटिन, लैदर और वुड फिनिश में उपलब्ध हैं। ग्लास और स्टील लुक टाइल्स भी इंटीरियर में ग्लैमर पैदा कर देती हैं।

न्यू ट्रेंड्स

टाइल्स में आजकल मैट फिनिश का चलन जोरों पर है। चमचमाती या ग्लॉसी टाइल्स अब ट्रेंड्स से आउट हो गई हैं। ग्लॉसी लुक अब चीप मानी जाती है। बाथरूम में फ्लोरिंग के लिए एंटी स्किड यानी फिसलन रोधी टाइल्स ही लगाना उचित है। इसकी सफाई भी आसान रहती है। बाथरूम में शावर के नीचे हाई लाइट के विरोधी कलर की टाइल्स लगाने से बाथरूम की खूबसूरती बढ़ जाती है। इनमें मोटिफ्स भी इस्तेमाल किए जाते हैं। किचन में कुकिंग एरिया के ऊपर 474 इंच की टाइल्स का रिवाज अब खत्म हो गया है। इसकी बजाय अब 2 फुट और 1 फुट की बड़ी टाइल्स लगने लगी हैं। इनमें भी नया ट्रेंड स्टील लुक वाली टाइल्स का है, जो रसोई की सफाई के लिए सहायक सिद्ध होती हैं। इनमें खाद्य पदार्थों या टी-सेट अदि के मोटिफ्स लगा कर खूबसूरती बढ़ाई जा सकती है। बैडरूम या लिविंग एरिया के फ्लोर पर बड़ी और कम से कम 272 की ज्वाइंट लैस टाइल्स लगाने का रिवाज आ गया है। इनमें ऐसी टाइल्स भी आ गई हैं, जो स्टोन लुक देती हैं।

आजकल फार्म हाउस या कोठी को कॉटेज लुक देने के लिए इनकी छत पर टैराकोटा से बनी कोरोगेटेड (नालीदार) टाइल्स बिछाई जाती हैं, जो देखने में बेहद खूबसूरत, सस्ती और आसानी से लगाई जा सकती हैं। लॉन या गार्डन एरिया में हैक्सामन या विविध आकार की स्टोन टाइल्स भी बाजार में आसानी से उपलब्ध हैं, जो इस्तेमाल में रफ-टफ होती हैं और गार्डन एरिया की खूबसूरती बहुत बढ़ा देती हैं। बैडरूम जैसे एरिया में हमेशा फ्लोरिंग के लिए हल्के और पेस्टल शेड्स इस्तेमाल करें। इससे मानसिक सुकून महसूस होता है। किचन छोटा हो तो दीवारों पर हल्के रंगी की टाइल्स लगाना ही उचित रहेगा। बड़े किचन में सॉफ्ट रंग इस्तेमाल कर सकते हैं। बड़े या छोटे फ्लोर एरिया में गहरे या चटख रंगों की टाइल्स इस्तेमाल कर सकते हैं, इसका ज्यादा इस्तेमाल से फर्श जल्दी ही उबा देगा। कुछ चुनिंदा कम्पनियां अब कस्टम मेड यानी आपकी पसंद अनुसार टाइल्स भी बनाने लगी हैं, जिन्हें कम्प्यूटर की मदद से बनाया जाता है। इनमें आप अपने पसंदीदा मोटिफ्स या परिवार के फोटो भी प्रिंट करवा सकते हैं। ग्रे, हरा बेज (हल्का) और सेल्फ डिजाइन वाली टाइल्स भी आजकल चलन में है।

प्रमुख टाइल्स बाजार

राजा गार्डन
कोटला मुबारकपुर
मंगोल पुरी
जगत पुरी (कड़कड़डूमा)
ग्रेटर कैलाश
करोल बाग (रैगरपुरा)
मंगोल पुरी
ओखला
नोएडा
पीतमपुरा (शिवा मार्केट)

महत्त्वपूर्ण टिप्स

फ्लोरिंग में कभी भी छोटे टाइल्स इस्तेमाल न करें। इनके ज्वाइंट्स दिखने में भद्दे लगते हैं।

टाइल्स ज्यादा डिजाइन वाली न हों, अन्यथा आप जल्द ही उनसे ऊब जाएंगे।

शोख और चटख रंगों का कम से कम उपयोग करें। यह आंखों को चुभने लगते हैं।

हमेशा प्लेन सरफेस वाली टाइल्स चुनें, ताकि उन्हें आसानी से साफ किया जा सके। एंटीक लुक वाली टाइल्स में खड्डे होते हैं, जिनमें गंदगी और धूल जम जाती है।

टाइल्स बिछाने का काम किसी निपुण कारीगर से करवाएं। महंगी टाइल्स पर लगा पैसा बर्बाद हो सकता है।

बची हुई टाइल्स संभाल कर रखें। भविष्य में कोई भी टाइल खराब होने पर उसे बदलने में आसानी होगी। कई बार टाइल्स के डिजाइन भी बाजार से आउट हो जाते हैं।

घर के जिस हिस्से में ज्यादा आवागमन हो, वहां गहरे रंग इस्तेमाल न करें, वर्ना वह थोड़े दिनों में बदरंग नजर आने लगेगा।

छोटी स्पेस में भी बड़ी और ज्वाइंट लेस टाइल्स लगाने से वह एरिया खुला और बड़ा दिखाई देता है।

हैवी ट्रैफिक एरिया में मजबूत और रफ-टफ टाइल्स लगाएं, क्योंकि उस पर जूते पहने लोग चलेंगे। इसके विपरीत बाथरूम में सॉफ्ट फील वाली टाइल्स नंगे पैरों को अच्छा एहसास देंगी।

टाइल्स की किस्में टाइल्स के आकार टाइल्स का उपयोग
सेरेमिक 8x8 इंच बाथरूम
स्लेट 12x12 इंच लॉबी फ्लोर
ग्लास 8x12 इंच ड्राइंग रूम
मोजेक 12x18 इंच फ्लोर
फाइबर 24x24 इंच मेन डोर वॉल
ग्रेनाइट 48x48 इंच कोटेज रूफ
वेट्रीफाइड 13x27 इंच गज़िबो रूफ

(यह लेख १२ अक्टूबर के दैनिक हिंदुस्तान में प्रकाशित हुआ है.)

Friday, October 8, 2010

संगीत में रंग जमाती सुरीली जोड़ियां
सुबोध भारतीय
First Published:07-10-10 01:51 PM
Last Updated:07-10-10 01:52 PM
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हिंदी फिल्मों से संगीत का अटूट नाता है। सवाक फिल्मों के 60-70 वर्षीय इतिहास में शायद 20 फिल्में भी ऐसी नहीं बनी होंगी, जिनमें गीत-संगीत न हो। इसी प्रकार हिंदी फिल्मों के हर दौर में संगीतकारों की जोड़ियां अपना परचम फहराती रही हैं।
सबसे पहली संगीतकार जोड़ी हुस्नलाल-भगतराम की थी, जिन्हें लता मंगेशकर को ब्रेक देने का श्रेय प्राप्त है। इन्होंने अपने समय में काफी लोकप्रियता हासिल की। उन दिनों यह जोड़ी अकेले ही चला करती थी और इनके मुकाबले में नौशाद, सी. रामचन्द्र, अनिल विश्वास, चित्रगुप्त, सरदार मलिक जैसे धुरंधर संगीतकार थे।

फिल्माकाश में राज कपूर के आर.के. बैनर के उदय के साथ ही संगीतकार जोड़ियां चल निकलीं। बरसात, आवारा, आग में शंकर जयकिशन के संगीत ने मानो संगीत प्रेमी दिलों पर जादू कर दिया। एक के बाद एक हिट संगीत ने उनकी लोकप्रियता को आसमान तक पहुंचा दिया। खय्याम, एस.डी. बर्मन, रौशन, मदन मोहन, ओ.पी. नैयर जैसे दिग्गजों के होते हुए भी इनकी तूती बोलती रही। अपने समय में शंकर-जयकिशन की जोड़ी ने अपने शानदार संगीत से तीन सालों तक लगातार (1971-1973) फिल्मफेयर अवॉर्ड जीते तथा कुल नौ बार। सत्तर के दशक के अंत में जयकिशन की मौत के बाद शंकर ने दस नंबरी और संन्यासी जैसी सुपरहिट फिल्में देकर मानो अपनी पारी समाप्ति की घोषणा कर दी। राजकपूर जैसे मित्र ने भी अब तक उनसे नाता तोड़ लिया था और उनके बैनर तले बनने वाली धर्म करम में आर.डी. बर्मन और बॉबी में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का संगीत था।

फिल्मी दुनिया की आगामी हिट संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी की थी, जो साठ के दशक में हेमंत कुमार के असिस्टेंट हुआ करते थे। इनकी जोड़ी ने भी एक के बाद एक छलिया, सरस्वतीचंद्र, उपकार, जंजीर, हेराफेरी, सुहाग, लावारिस, मुकद्दर का सिकंदर, डॉन, अपराध, कुरबानी जैसी हिट फिल्में देकर धूम मचा दी। मगर कल्याणजी के निधन के बाद यह जोड़ी फिल्मों से आउट हो गई। कल्याणजी के पुत्र वीजू शाह ने त्रिदेव, मोहरा आदि फिल्मों के जरिए अपने पिता का जादू चलाने की कोशिश की, मगर अंतत: गुमनामी के अंधेरे में खो गए।

1962 में आई राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म दोस्ती ने कल्याणजी-आनंदजी के सहायक लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को ब्रेक दिया। पारसमणि, आया सावन झूम के, शोर, दाग, रोटी कपड़ा और मकान, नसीब, अमर अकबर एंथनी, रोटी, प्रेम रोग, इक दूजे के लिए, कजर्, सौदागर, राम-लखन, खलनायक, तेजाब, कर्मा, हीरो, सरगम, सत्यम् शिवम् सुंदरम्, क्रांति और हम जैसी सुपरहिट फिल्मों से इस जोड़ी ने जल्द ही अपने गुरुओं को टक्कर देनी शुरू कर दी। मनोज कुमार, राजकपूर, जे. ओमप्रकाश और सुभाष घई जैसे दिग्गजों का प्रश्रय पाकर इन्होंने फिल्मी संगीत को अनेक हिट गीत दिये। अपने शानदार संगीत से चार सालों तक लगातार (1978-1981) फिल्मफेयर अवॉर्ड जीते। 1999 में लक्ष्मीकांत के निधन के बाद संगीतकारों की यह सबसे कामयाब जोड़ी भी लुप्त हो गई।

इसके बाद के आधुनिक फिल्म संगीत में आनंद-मिलिंद, नदीम-श्रवण और जतिन-ललित का उदय हुआ। जहां आनंद-मिलिंद कयामत से कयामत तक, अंजाम, दिल, बेटा, दूल्हे राजा, कुली नं. 1, अनाड़ी के बाद सफलता कभी दोहरा ना सके, वहीं नदीम-श्रवण आशिकी के साथ फिल्म संगीत के आकाश पर धूमकेतू की तरह छा गए। साजन, दिल है कि मानता नहीं, फूल और कांटे, दीवाना, जुनून, सर, हम हैं राही प्यार के, राजा हिंदुस्तानी जैसी एक के बाद एक हिट फिल्म देकर और लगातार तीन फिल्म फेयर पुरस्कार जीत कर इन्होंने मानो शंकर-जयकिशन की याद ताजा करा दी। गुलशन कुमार की हत्या के आरोपी नदीम के भारत छोड़ कर लंदन भाग कर शरण लेते ही यह जोड़ी अपना जादू खो बैठी। हालांकि उस समय यह जोड़ी टॉप पर थी। एक बार फिर कई वर्ष बाद धड़कन में अपना हिट संगीत देने में कामयाब रहे, मगर वो ट्यूनिंग फिर से न बन पाई और यह जोड़ी बिखर गई। श्रवण के पुत्रों संजीव-दर्शन ने मन में सुमधुर संगीत दिया था, मगर फिल्म फ्लॉप होने से इनके करियर को ब्रेक लग गया।

सुलक्षणा पंडित के भाई जतिन-ललित इतने प्रतिभावान थे कि उनका संगीत कभी आर.डी. बर्मन तो कभी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत की याद दिलाता था। मधुर संगीत से रची इनकी धुनों ने इन्हें ऊंचा दर्जा दिलाया था-जो जीता वही सिकंदर, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, कभी हां कभी ना, राजू बन गया जेंटलमैन, चलते-चलते, हम तुम, मौहब्बतें, कभी खुशी कभी गम, फना, कुछ कुछ होता है जैसी म्यूजिकल फिल्मों के रचयिता लंबी रेस के घोड़े थे, मगर अहं के टकराव के चलते पिछले वर्ष यह जोड़ी टूट गई। अब यह अलग-अलग काम कर रहे हैं, मगर एक भी हिट फिल्म नहीं दे पाए हैं।

शिव कुमार शर्मा और हरि प्रसाद चौरसिया जैसे दिग्गज शास्त्रीय वादकों की जोड़ी को यश चोपड़ा ने सिलसिला में शिव-हरि के रूप में प्रस्तुत किया। इसके बाद चांदनी, डर, लम्हे, परंपरा, विजय आदि में भी। यश चोपड़ा कैम्प से आउट होने के बाद इस जोड़ी को किसी ने नहीं पूछा। अब यह फिल्मों से दूर है।

फिल्म संगीत के आकाश में अभी एक अच्छी टीम शंकर-एहसान-लॉय की है, जो लगातार सुमधुर संगीत देते जा रहे हैं। कल हो ना हो, रॉक ऑन, डॉन, दोस्ताना, मिशन कश्मीर, दिल चाहता है, बंटी और बबली, तारे जमीन पर आदि फिल्में इनके दमदार संगीत का शानदार प्रमाण हैं। इसी प्रकार सलीम-सुलेमान ने आचा नच ले, रब ने बना दी जोड़ी, चक दे इंडिया और विशाल-शेखर की जोड़ी ने दस, झंकार बीट्स, ओम शांति ओम के हिट संगीत दिए।

इन्होंने काफी संभावनाएं जगाई हैं। नये संघर्षरत संगीतकारों में साजिद-वाजिद को सलमान ने काफी प्रमोट किया। प्यार किया तो डरना क्या, हैलो ब्रदर, वांटेड, पार्टनर, मैं और मिसेज खन्ना जैसी फिल्मों से यह उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं।

संगीतकार जोड़ियां
हुस्नलाल-भगतराम
शंकर-जयकिशन
कल्याणजी-आनंदजी
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल शिव-हरी
सपन-जगमोहन

सोनिक-ओमी
आनंद-मिलिंद
दिलिप सेन-समीर सेन
अमर-उत्पल
उत्तम-जगदीश
नदीम-श्रवण
जतिन-ललित
शंकर-एहसान-लॉय
विशाल-शेखर
साजिद-वाजिद
सलीम-सुलेमान
संजीव-दर्शन
निखिल-विनय
बापी-ततुल
जीतू-तपन

(यह लेखअक्टूबर को दैनिक हिंदुस्तान मैं प्रकाशित हुआ है)

Tuesday, September 14, 2010

राखी पर मिठाइयां खरीदते समय..


सुबोध भारतीय
First Published:19-08-10 12:05 PM

राखी का त्योहार करीब है और इस अवसर पर बहनें अवश्य ही अपने भाइयों का मुंह मीठा करवाएंगी। मगर पिछले कुछ समय से मीडिया में मिठाई के प्रति आ रही नकारात्मक खबरों ने आम जनता के मन में संदेह उत्पन्न कर दिया है। फिर भी मिठाई के बिना कोई उत्सव मनाना असंभव है। आइये जानें राखी के अवसर पर आप किस तरह अच्छी मिठाइयों का चयन कर सकते हैं।

मिठाइयां मुख्यत: तीन प्रकार की होती हैं- पहली ड्राई-फ्रूट्स से बनी मिठाइयां। दूसरी दूध या मावे से बनी मिठाइयां और तीसरी परंपरागत मिठाइयां, जिनमें देसी घी मुख्य तत्व रहता है।

ड्राई-फ्रूट्स जैसे काजू, बादाम और पिस्ता से बनी मिठाइयों की गुणवता के बारे में अधिक संदेह की गुंजाइश नहीं है। इनकी पूरी वैरायटी जैसे काजू कतली, पिस्ता लॉज, काजू रोल, मेवा बाइट्स, बादाम बरफी, अंजीर बर्फी इत्यादि आपको सिर्फ बड़े और नामी-गिरामी हलवाइयों के यहां ही मिलेगी। इनकी शेल्फ लाइफ अन्य मिठाइयों से ज्यादा होती है, मगर दाम करीब दोगुने। यदि आपकी पॉकेट इजाजत दे तो यह एक अच्छा चयन हो सकता है।

मिठाइयों में दूसरा वर्ग-दूध, छैने या मावे से बनी मिठाइयों का है। इन्हीं में सबसे अधिक मिलावट की आशंका होती है, विशेषकर मावे से बनी मिठाइयों में। इनमें सिन्थेटिक दूध और नकली मावा (देसी घी रहित) इस्तेमाल किया जा सकता है। मावे से बनी मिठाइयों में जल्दी खराब होने की संभावना भी होती है। इनमें से छैने से बनी मिठाइयों-जैसे मलाई चाप, रसगुल्ला, पाकीजा, रस माधुरी, राजभोग, रस कदम, संदेस इत्यादि की शेल्फ लाइफ तो मात्र कुछ घंटों की ही होती है। हालांकि यह मिठाइयां खाने में अत्यंत सुस्वादु तथा देखने में सुन्दर होती हैं, मगर इन मिठाइयों को लेने-देने में इस्तेमाल से परहेज करना चाहिए। दूध और मावे से बनी कुछ मिठाइयां जैसे गुलाब जामुन, मिल्क केक, पेड़ा आदि सबसे ज्यादा दिनों तक चलती हैं, क्योंकि इन्हें देर तक पका कर बनाया जाता है।

तीसरे वर्ग यानी घी से बनी मिठाइयों में सबसे कम मिलावट के चांस हैं और यह आपकी जेब पर भी भारी नहीं पड़ेंगी। आपको यह मिठाइयां उन दुकानों से खरीदनी होंगी, जो सारी मिठाइयां देसी घी में ही बनाते हैं। इन मिठाइयों को आप हफ्ते-दस दिन तक भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इन मिठाइयों में प्रमुख हैं-मोतीचूर के लड्डू, बेसन के लड्ड, पंजीरी लड्ड, बालू शाही, इमरती, सोहन पापड़ी, पतीसा, मूंग दाल बरफी, पिन्नी, नारियल बर्फी इत्यादि। इन मिठाइयों के पक्ष में एक बात और जाती है कि कुछ दिनों बाद भी इनके स्वाद में ज्यादा अंतर नहीं पड़ता।

अंत में इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि मिठाइयां अपने इलाके के पुराने और प्रतिष्ठित हलवाइयों से ही खरीदें। यह अपनी प्रतिष्ठा की कीमत मिलावट से ऊपर ही रखते हैं। राखी, दीवाली के अवसर पर खुलने वाली नुक्कड़ दुकानों से कदापि सामान न खरीदें, क्योंकि उनका सामान नकली व बासी हो सकता है। ये दुकानें चन्द दिनों के लिए ही अस्थाई रूप से चलाई जाती हैं। सबसे जरूरी बात मिठाई खरीदते समय यह कि पहले मिठाई विशेष को चख लें, यदि अच्छी लगे और आप संतुष्ट हों तभी खरीदें। छोटी दुकानें मिठाई का डिब्बा साथ में तोल कर ग्राहकों को चूना लगाती हैं, जबकि बड़ी दुकानों में डिब्बे का वजन अलग किया जाता है। इसका ध्यान रखें।

इस बारे में अग्रवाल स्वीट कॉर्नर, द्वारका के एमडी विनोद अग्रवाल का कहना था-मिलावटी मावे या मिठाइयों की घटनाएं आज तक दिल्ली के किसी भी नामी या पुराने हलवाई के साथ नहीं हुई हैं। हमारी मिठाइयां कुछ महंगी अवश्य हो सकती हैं, मगर हमें अपनी प्रतिष्ठा, जो हमने सालों-साल मेहनत करके बनाई है-ज्यादा प्यारी है। इसलिए हम कभी भी हल्का सामान इस्तेमाल नहीं करते।

ज्यादा शेल्फ लाइफ वाली मिठाइयां

1. काजू कतली, 2. पिन्नी, 3. ढोढा, 4. मोतीचूर-लड्ड, 5. पेठा, 6. बेसन लड्ड, 7. पंजीरी लड्ड, 8. पेड़ा, 9. सोहन पापड़ी, 10. पतीसा, 11. बालू शाही, 12. मिल्क केक।

न्यू वैडिंग ट्रेंड्स

शादियों का मौसम बस कुछ दिनों बाद दस्तक देने ही वाला है, जो कि थोड़े-थोड़े अन्तराल के साथ फरवरी-मार्च तक चलेगा। दिल्ली में शादियों के दो ही सीजन होते हैं - गर्मियों में और सर्दियों में। जो लोग शादी की भव्यता का पूरा आनन्द लेना चाहते हैं, वह शादियां सर्दी में ही करते हैं, क्योंकि यह सीजन लम्बा होता है और पसीने- गर्मी से बदहाल भी नहीं करता। आइये देखें आजकल दिल्ली में शादियों के दौरान क्या कुछ नया होने लगा है। सुबोध भारतीय की रिपोर्ट

वैडिंग फैशन

पिछले एक-दो वर्षों में दूल्हा-दुल्हन के परिधानों का फैशन बदला है। प्रसिद्ध फैशन डिजाइनर रुचिका मोदी के अनुसार, अब लोग ज्यादा डिमांडिंग हो गए हैं और तैयार ड्रेसेज को देख कर उनमें अपनी रुचि के अनुसार परिवर्तन करवाते हैं। अब पुराने लहंगे का रिवाज खत्म हो गया है, जिसमें बड़ा सा घेरदार लहंगा होता था। अब ये कमर व घुटनों तक बॉडी के हिसाब से फिटेड होते हैं और उसके बाद कलियों से घेरा बनाया जाता है। इससे दुल्हन की फिगर छुपती नहीं, बल्कि आकर्षक लगती है। इन लहंगों में आजकल ब्राइट कलर चल रहे हैं, जैसे ऑरेंज, गुलाबी, पीला व परंपरागत मैरून। इनमें शिमर, नेट, जॉर्जेट और शिफॉन कपड़े इस्तेमाल किये जाते हैं। इन लहंगों में जरदोरी नक्शी या कोटा पत्ती का काम किया जाता है। कीमत 25,000 से शुरू होती है और ऊपरी लिमिट कोई नहीं।

आजकल शादियों में संगीत और मेहंदी आदि के अलग फंक्शन भी धूमधाम से मनाये जाते हैं। इनके लिए दुल्हनें वेस्टर्न गाउन्स पहनने लगी हैं या लहंगा साड़ी। इस लहंगा साड़ी में पल्लू पहले से फिक्स होता है और साड़ी की तरह चुन्नटें नहीं बांधनी पड़तीं। छाबड़ा 555 के लालचंद मूलचन्दानी के अनुसार, लहंगा साड़ी का चलन अब बढ़ता जा रहा है, क्योंकि शादी का एक फंक्शन नहीं होता। दुल्हन को मेहंदी, संगीत या चुन्नी की रस्म में भी अलग दिखना होता है।

दूल्हों के परिधान में भी पिछले कुछ सालों में परिवर्तन आया है। वेस्टर्न सूट का रिवाज प्राय: खत्म ही हो गया है। शेरवानी तो दूल्हों की पहली पसंद है ही, इंडो-वेस्टर्न सूट का रिवाज भी अब तेजी से बढ़ता जा रहा है। दीवान साहब, गुजराल संस, रॉड आदि शोरूम्स पर इंडो-वेस्टर्न सूट्स उपलब्ध हैं। इनकी प्राइज रेंज 15,000 से शुरू होकर 50,000 तक है।

मेकअप

दुल्हनों के मेकअप या लुक में अब काफी बदलाव आया है। सौन्दर्य विशेषज्ञ भारती तनेजा के अनुसार, दुल्हन के चेहरे पर अब बिंदियों का श्रृंगार कम से कम होता जा रहा है। साठ के दशक वाले आई लाइनर्स ट्रैंड में हैं। आंखों पर ग्लिटर्स की शिमरिंग की जाती है, जबकि फॉल्स आई लैशेज अब पहले से बेहतर और परिपूर्ण हो गई हैं। पहले जो मेकअप ब्रश और हाथों से किया जाता था और चेहरे पर काफी मोटी लेयर्स रहती थीं, अब उसकी जगह एयर ब्रश से वॉटर प्रूफ मेकअप किया जाता है। एयर ब्रश तकनीक में मौसम और दुल्हन की त्वचा के अनुसार मेकअप एडजस्ट हो जाता है। यह काफी नेचुरल लगता है और अधिक सफाई से होता है। दुल्हनों के ब्राइडल मेकअप की रेंज 8,000 से 21,000 तक है।

दूल्हे भी मेकअप के मैदान में पीछे नहीं हैं। जेन्ट्स या यूनीसेक्स सैलून्स में ग्रूम्स पैकेजचल रहे हैं। इनमें पैडिक्योर, मेनिक्योर से लेकर फेशियल, ब्लीचिंग, फेस मसाज और हेयर स्टाइलिंग भी की जाती है।

फोटोग्राफी

विवाह उत्सव की भव्यता में एक अहम रोल फोटोग्राफी का भी होता है। शादी के सारे समारोह निबट जाने के बाद उसके यादगार पल एलबम में सिमट जाते हैं, जो सालोंसाल शादी की भव्यता की याद दिलाती रहते हैं। दिल्ली के नामचीन प्रेम स्टूडियो के मुकेश राजपूत के अनुसार, 12 बाई 30 की करिज्मा एलबम आजकल प्रचलन में है। शादियों में स्टूडियो लगाने से भी दूल्हा-दुल्हन व परिवार के प्रोफेशनल फोटोग्राफ मिल जाते हैं। कई बार मेजबान अपने मेहमानों के परिवार के भी फोटोग्राफ इन्हीं में खिंचवाते हैं, बाद में उन्हें यादगार के रूप में भेज देते हैं। आजकल के वैवाहिक आयोजनों को देखते हुए फोटोग्राफी का बजट एक-डेढ़ लाख तक जाता है। अभी लेटेस्ट ट्रैंड मैटेलिक पेपर पर 16 बाई 24 की एलबम बनाने का है, जिसमें प्रति एलबम 30 हजार रु. तक खर्चा आता है।

वीडियोग्राफी का लेटेस्ट ट्रैंड हाई डेफिनेशन वीडियोग्राफी का है। शादी के आयोजन में जिप क्रेन द्वारा मूविंग कैमरा लगाया जाता है और बड़ी-बड़ी स्क्रीन्स पर इसे लाइव दिखाया जाता है। वीडियोग्राफी में प्रति कैमरा 10 से 18 हजार रुपये तक का खर्च आता है। फाइनल डीवीडी बनाने में मिक्सिंग, एडिटिंग के लेटेस्ट सॉफ्टवेयर इस्तेमाल किए जाते हैं।

पंडाल और कैटरिंग

पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली में पार्किंग और स्थान की तंगी के बावजूद पंडालों में शादियों का चलन बढ़ा है। फाइव स्टार होटल्स और बैंकेट हॉल्स की बजाय बड़ी-बड़ी जगहों में भव्य पैमाने पर टैंट वालों द्वारा ग्राहकों की मांग के अनुसार इंडिया गेट, अक्षर धाम, राजस्थानी मुगल आदि थीम बनाई जा रही हैं। मोहन टैंट हाउस के अविनाश ओबेराय के अनुसार- हमारे ग्राहक अब थीम बेस डेकोरेशन पर ज्यादा जोर देने लगे हैं। इनमें रॉयल या डेस्टिनेशन वेडिंग थीम काफी लोकप्रिय हैं। लोग इसी प्रकार का एक्सटीरियर और इंटीरियर चाहते हैं और सजावट में छोटी से छोटी चीज का ध्यान रखने लगे हैं। पार्किंग की समस्या का समाधान वैले पार्किंग के रूप में आया है, जो कि थीम बेस वेडिंग में जरूर ही उपलब्ध रहती है। इससे मेहमानों को काफी अच्छा महसूस होता है। थीम बेस पंडाल का खर्च 10 लाख से ऊपर ही आता है।

कैटरिंग का व्यवसाय अब काफी बड़ा रूप ले चुका है। मेजबान अपने मेहमानों को अधिक से अधिक और बेहतरीन वैरायटी खिलाना चाहते हैं। यही वजह है कि आज एक शादी की पार्टी में 80 से 250 तरह के व्यंजन परोसे जा रहे हैं। दिल्ली के प्रसिद्ध कैटरर सेवन सीज के कल्याण दास का कहना है- अब खाने की वैरायटी में कोई सीमा नहीं रही। फ्रूट चाट में विदेशी फलों के अलावा थाई, मैक्सिकन और इटेलियन पित्जा जैसी वैरायटी अब आम हो गई है और कॉकटेल के बिना कोई पार्टी पूरी नहीं होती। मेहमानों को अब दावत में केक पेस्ट्री की वैरायटी के साथ-साथ मुगलई, साउथ इंडियन, पंजाबी, राजस्थानी, गुजराती, मैक्सिकन, चाइनीज और थाई फूड की वैरायटी भी एक ही पंडाल में मिल जाती है। मिठाइयों और आइसक्रीम तथा कुल्फी की वैरायटी भी अब कम से कम 15 किस्म की होती है। चाट काउंटर्स और स्नैक्स की वैरायटी भी अब अनगिनत हो गई हैं। इस प्रकार के आयोजन में प्रति प्लेट 800 से लेकर 1500 रुपये तक खर्चा आता है।

निमंत्रण

शादी की तैयारी में सबसे महत्त्वपूर्ण रोल निमंत्रण पत्र यानी वैडिंग कार्ड का होता है। अब औसत दर्जे का शादी कार्ड 25-75 रुपये का बनता है और बड़े दर्जे की शादी करने वाले लोग शादी कार्ड 500 रुपये तक का बनवाते हैं। इम्पोर्टेड पेपर पर गोल्डन लीफ प्रिंटिग, यूवी इफैक्ट व लेजर कट के मोटिफ लगाने से लेकर शादी कार्ड से मैचिंग मिठाई और भाजी का डिब्बा तक बनाया जाता है। यही लेटेस्ट ट्रैंड है। प्राय: सभी निमंत्रण पत्रों के साथ मैचिंग मिठाई का डिब्बा बांटा जाता है। इसके लिए लोग चावड़ी बाजार से लेकर लुधियाना के फव्वारा चौक तक पहुंच जाते हैं। आखिर शादी की भव्यता का अंदाजा शादी कार्ड के गेटअप से ही हो जाता है। वैसे जिन निमंत्रण पत्रों के साथ मिठाई बांटी जाती है, उन्हें व्यक्तिगत रूप से देने का चलन है, जबकि यदि सिर्फ कार्ड ही भेजना हो तो कूरियर से भेज कर फोन कर दिया जाता है.

(यह लेख १४ सितम्बर को हिंदुस्तान हिंदी दैनिक में प्रकाशित हुआ है)

Monday, May 31, 2010

मौत के चुनिन्दा शेर

मौत का एक दिन मुकरर है
नींद क्यों रात भर नहीं आती

पल भर की खबर नहीं
सामान उम्र भर का


अब तो घबरा के कहते हैं कि मर जायेंगे
मर के भी चैन न पाया तो किधर जायेंगे