वफ़ा का ज़िम्मा किसी एक पर नहीं होता
दिलों में फ़ासले लेकर सफ़र नहीं होता
किसी का टूट गया दिल तुम्हे पता ही नहीं
कोई भी दोस्त हो यूँ बेख़बर नहीं होता
किसी का बसता हुआ घर उजाड़ने वालो
हरेक शख़्स की क़िस्मत में घर नहीं होता
दिलों के बीच मुक़दमा भी क्या मुक़दमा है
की जिसका फ़ैसला सारी उमर नहीं होता
हरेक बात उड़ा देता है वो बातों में
किसी भी बात का उस पर असर नहीं होता
I am a person, with a happy go lucky attitude. I am extremely positive and passionate person. I believe in good human relationship. I am fond of reading books on various subject. I also write as a freelancer in Hindi.
Friday, November 25, 2011
राम गोपाल भारतीय
राम गोपाल भारतीय
तेरा ख़याल जो मेरा ख़याल हो जाए
तो ख़त्म तेरा-मेरा हर सवाल हो जाए
जुड़े हो काश हमारे-तुम्हारे दिल ऐसे
सितम हो तुझपे मेरी आँख लाल हो जाए
किसी अमीर की ख़ुशियों से ऐतराज़ नहीं
ख़ुशी ग़रीब की भी तो बहाल हो जाए
न चाँद तारे न सूरज की ज़रूरत है मुझे
मेरे चिराग़ की बस देखभाल हो जाए
मै अपने ख़ून की स्याही से इन्क़लाब लिखूँ
ख़ुदाया मेरी क़लम इक मशाल हो जाए
ख़ुदा के वास्ते इतना भी तुम करम न करो
मै बेकमाल रहूँ और कमाल हो जाए
राम गोपाल भारतीय
मुस्कुराते ग़र रहोगे और पास आएँगे लोग
तुम अगर रोने लगोगे दूर हट जाएँगे लोग
आज भोलेपन की क़ीमत ये भला समझंगे क्या
एक दिन खो देंगे तुझको और पछ्ताएँगे लोग
साँप अब डसने लगे है आस्तीनों से निकल
और कब तक दोस्त बनकर हमको बहलाएँगे लोग
हर गली, हर मोड़ पर, तैयार बेठे है सभी
आइना दिखलाओगे तो ईंट बरसाएँगे लोग
हादसे में जल गया है जिसके सपनो का जहाँ
वो भला समझेगा कैसे, कैसे समझाएँगे लोग
अब कोई समझे न समझे लेखनी के दर्द को
एक न एक दिन तो हमारे गीत दोहराएँगे लोग
राम गोपाल भारतीय
किसी की आँख में आँसू सजाकर
बहुत पछताओगे यूँ मुस्कुराकर
तुम उसके पाँव के छाले तो देखो
कहीं वो गिर न जाए डगमगाकर
तेरी शोहरत तेरा धन-माल इक दिन
हवा ले जाएगी पल में उड़ाकर
वही देता है अक्सर चोट दिल को
जिसे हम देखते हैं आज़माकर
हमारे सर की भी क़ीमत है कोई
जिसे हम जान पाए सर गँवाकर
बड़ा अच्छा था उनसे फ़ासला था
बहुत पछताए हम नज़दीक आकर
हस्तीमल 'हस्ती'
साया बनकर साथ चलेंगे इसके भरोसे मत रहना
अपने हमेशा अपने रहेंगे इसके भरोसे मत रहना
सावन का महीना आते ही बादल तो छा जाएँगे
हर हाल में लेकिन बरसेंगे इसके भरोसे मत रहना
सूरज की मानिंद सफ़र पे रोज़ निकलना पड़ता है
बैठे-बैठे दिन बदलेंगे इसके भरोसे मत रहना
बहती नदी में कच्चे घड़े हैं रिश्ते, नाते, हुस्न, वफ़ा
दूर तलक ये बहते रहेंगे इसके भरोसे मत रहना
Hasimal Hasti
बाकी लोहा है बेकार
कैसे बच सकता था मैं
पीछे ठग थे आगे यार
बोरी भर मेहनत पीसूँ
निकले इक मुट्ठी भर सार
भूखे को पकवान लगें
चटनी, रोटी, प्याज, अचार
जीवन है इक ऐसी डोर
गाठें जिसमें कई हजार
शुक्र है राजा मान गया
दो दूनी होते हैं चार
Hastimal Hasti
इंसान इक मिसाल कभी था अभी नहीं
पत्थर भी तैर जाते थे तिनकों की ही तरह
चाहत में वो कमाल कभी था अभी नहीं
क्यों मैंने अपने ऐब छिपा कर नहीं रखे
इसका मुझे मलाल कभी था अभी नहीं
क्या होगा कायनात का गर सच नहीं रहा
हर दिल में ये ख़्याल कभी था अभी नहीं
क्यों दूर-दूर रहते हो पास आओ दोस्तों
ये ‘हस्ती’ तंग-हाल कभी था अभी नहीं
Hastimal Hasti
हम आँधियों में भी तेवर बला के रखते हैं
मिला दिया है पसीना भले ही मिट्टी में
हम अपनी आँख का पानी बचा के रखतें हैं
बस एक ख़ुद से ही अपनी नहीं बनी वरना
ज़माने भर से हमेशा बना के रखतें हैं
हमें पसंद नहीं जंग में भी चालाकी
जिसे निशाने पे रक्खें बता के रखते हैं
कहीं ख़ूलूस कहीं दोस्ती कहीं पे वफ़ा
बड़े करीने से घर को सजा के रखते हैं
Parveen Shakir
कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
उस ने ख़ुश्बू की तरह मेरी पज़ीराई की
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की
वो कहीं भी गया लौटा तो मेरे पास आया
बस यही बात है अच्छी मेरे हरजाई की
तेरा पहलू तेरे दिल की तरह आबाद रहे
तुझ पे गुज़रे न क़यामत शब-ए-तन्हाई की
उस ने जलती हुई पेशानी पे जो हाथ रखा
रूह तक आ गई तासीर मसीहाई की
Neeraj
दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था|
तुम्हारे घर का सफ़र इस क़दर सख्त न था|
इतने मसरूफ़ थे हम जाने के तैयारी में,
खड़े थे तुम और तुम्हें देखने का वक्त न था|
मैं जिस की खोज में ख़ुद खो गया था मेले में,
कहीं वो मेरा ही एहसास तो कमबख्त न था|
जो ज़ुल्म सह के भी चुप रह गया न ख़ौल उठा,
वो और कुछ हो मगर आदमी का रक्त न था|
उन्हीं फ़क़ीरों ने इतिहास बनाया है यहाँ,
जिन पे इतिहास को लिखने के लिए वक्त न था|
शराब कर के पिया उस ने ज़हर जीवन भर,
हमारे शहर में 'नीरज' सा कोई मस्त न था|