Friday, October 8, 2010

संगीत में रंग जमाती सुरीली जोड़ियां
सुबोध भारतीय
First Published:07-10-10 01:51 PM
Last Updated:07-10-10 01:52 PM
ई-मेल Image Loadingप्रिंट टिप्पणियॉ: Image Loadingपढे Image Loadingलिखे (0) अ+ अ-

हिंदी फिल्मों से संगीत का अटूट नाता है। सवाक फिल्मों के 60-70 वर्षीय इतिहास में शायद 20 फिल्में भी ऐसी नहीं बनी होंगी, जिनमें गीत-संगीत न हो। इसी प्रकार हिंदी फिल्मों के हर दौर में संगीतकारों की जोड़ियां अपना परचम फहराती रही हैं।
सबसे पहली संगीतकार जोड़ी हुस्नलाल-भगतराम की थी, जिन्हें लता मंगेशकर को ब्रेक देने का श्रेय प्राप्त है। इन्होंने अपने समय में काफी लोकप्रियता हासिल की। उन दिनों यह जोड़ी अकेले ही चला करती थी और इनके मुकाबले में नौशाद, सी. रामचन्द्र, अनिल विश्वास, चित्रगुप्त, सरदार मलिक जैसे धुरंधर संगीतकार थे।

फिल्माकाश में राज कपूर के आर.के. बैनर के उदय के साथ ही संगीतकार जोड़ियां चल निकलीं। बरसात, आवारा, आग में शंकर जयकिशन के संगीत ने मानो संगीत प्रेमी दिलों पर जादू कर दिया। एक के बाद एक हिट संगीत ने उनकी लोकप्रियता को आसमान तक पहुंचा दिया। खय्याम, एस.डी. बर्मन, रौशन, मदन मोहन, ओ.पी. नैयर जैसे दिग्गजों के होते हुए भी इनकी तूती बोलती रही। अपने समय में शंकर-जयकिशन की जोड़ी ने अपने शानदार संगीत से तीन सालों तक लगातार (1971-1973) फिल्मफेयर अवॉर्ड जीते तथा कुल नौ बार। सत्तर के दशक के अंत में जयकिशन की मौत के बाद शंकर ने दस नंबरी और संन्यासी जैसी सुपरहिट फिल्में देकर मानो अपनी पारी समाप्ति की घोषणा कर दी। राजकपूर जैसे मित्र ने भी अब तक उनसे नाता तोड़ लिया था और उनके बैनर तले बनने वाली धर्म करम में आर.डी. बर्मन और बॉबी में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का संगीत था।

फिल्मी दुनिया की आगामी हिट संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी की थी, जो साठ के दशक में हेमंत कुमार के असिस्टेंट हुआ करते थे। इनकी जोड़ी ने भी एक के बाद एक छलिया, सरस्वतीचंद्र, उपकार, जंजीर, हेराफेरी, सुहाग, लावारिस, मुकद्दर का सिकंदर, डॉन, अपराध, कुरबानी जैसी हिट फिल्में देकर धूम मचा दी। मगर कल्याणजी के निधन के बाद यह जोड़ी फिल्मों से आउट हो गई। कल्याणजी के पुत्र वीजू शाह ने त्रिदेव, मोहरा आदि फिल्मों के जरिए अपने पिता का जादू चलाने की कोशिश की, मगर अंतत: गुमनामी के अंधेरे में खो गए।

1962 में आई राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म दोस्ती ने कल्याणजी-आनंदजी के सहायक लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को ब्रेक दिया। पारसमणि, आया सावन झूम के, शोर, दाग, रोटी कपड़ा और मकान, नसीब, अमर अकबर एंथनी, रोटी, प्रेम रोग, इक दूजे के लिए, कजर्, सौदागर, राम-लखन, खलनायक, तेजाब, कर्मा, हीरो, सरगम, सत्यम् शिवम् सुंदरम्, क्रांति और हम जैसी सुपरहिट फिल्मों से इस जोड़ी ने जल्द ही अपने गुरुओं को टक्कर देनी शुरू कर दी। मनोज कुमार, राजकपूर, जे. ओमप्रकाश और सुभाष घई जैसे दिग्गजों का प्रश्रय पाकर इन्होंने फिल्मी संगीत को अनेक हिट गीत दिये। अपने शानदार संगीत से चार सालों तक लगातार (1978-1981) फिल्मफेयर अवॉर्ड जीते। 1999 में लक्ष्मीकांत के निधन के बाद संगीतकारों की यह सबसे कामयाब जोड़ी भी लुप्त हो गई।

इसके बाद के आधुनिक फिल्म संगीत में आनंद-मिलिंद, नदीम-श्रवण और जतिन-ललित का उदय हुआ। जहां आनंद-मिलिंद कयामत से कयामत तक, अंजाम, दिल, बेटा, दूल्हे राजा, कुली नं. 1, अनाड़ी के बाद सफलता कभी दोहरा ना सके, वहीं नदीम-श्रवण आशिकी के साथ फिल्म संगीत के आकाश पर धूमकेतू की तरह छा गए। साजन, दिल है कि मानता नहीं, फूल और कांटे, दीवाना, जुनून, सर, हम हैं राही प्यार के, राजा हिंदुस्तानी जैसी एक के बाद एक हिट फिल्म देकर और लगातार तीन फिल्म फेयर पुरस्कार जीत कर इन्होंने मानो शंकर-जयकिशन की याद ताजा करा दी। गुलशन कुमार की हत्या के आरोपी नदीम के भारत छोड़ कर लंदन भाग कर शरण लेते ही यह जोड़ी अपना जादू खो बैठी। हालांकि उस समय यह जोड़ी टॉप पर थी। एक बार फिर कई वर्ष बाद धड़कन में अपना हिट संगीत देने में कामयाब रहे, मगर वो ट्यूनिंग फिर से न बन पाई और यह जोड़ी बिखर गई। श्रवण के पुत्रों संजीव-दर्शन ने मन में सुमधुर संगीत दिया था, मगर फिल्म फ्लॉप होने से इनके करियर को ब्रेक लग गया।

सुलक्षणा पंडित के भाई जतिन-ललित इतने प्रतिभावान थे कि उनका संगीत कभी आर.डी. बर्मन तो कभी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत की याद दिलाता था। मधुर संगीत से रची इनकी धुनों ने इन्हें ऊंचा दर्जा दिलाया था-जो जीता वही सिकंदर, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, कभी हां कभी ना, राजू बन गया जेंटलमैन, चलते-चलते, हम तुम, मौहब्बतें, कभी खुशी कभी गम, फना, कुछ कुछ होता है जैसी म्यूजिकल फिल्मों के रचयिता लंबी रेस के घोड़े थे, मगर अहं के टकराव के चलते पिछले वर्ष यह जोड़ी टूट गई। अब यह अलग-अलग काम कर रहे हैं, मगर एक भी हिट फिल्म नहीं दे पाए हैं।

शिव कुमार शर्मा और हरि प्रसाद चौरसिया जैसे दिग्गज शास्त्रीय वादकों की जोड़ी को यश चोपड़ा ने सिलसिला में शिव-हरि के रूप में प्रस्तुत किया। इसके बाद चांदनी, डर, लम्हे, परंपरा, विजय आदि में भी। यश चोपड़ा कैम्प से आउट होने के बाद इस जोड़ी को किसी ने नहीं पूछा। अब यह फिल्मों से दूर है।

फिल्म संगीत के आकाश में अभी एक अच्छी टीम शंकर-एहसान-लॉय की है, जो लगातार सुमधुर संगीत देते जा रहे हैं। कल हो ना हो, रॉक ऑन, डॉन, दोस्ताना, मिशन कश्मीर, दिल चाहता है, बंटी और बबली, तारे जमीन पर आदि फिल्में इनके दमदार संगीत का शानदार प्रमाण हैं। इसी प्रकार सलीम-सुलेमान ने आचा नच ले, रब ने बना दी जोड़ी, चक दे इंडिया और विशाल-शेखर की जोड़ी ने दस, झंकार बीट्स, ओम शांति ओम के हिट संगीत दिए।

इन्होंने काफी संभावनाएं जगाई हैं। नये संघर्षरत संगीतकारों में साजिद-वाजिद को सलमान ने काफी प्रमोट किया। प्यार किया तो डरना क्या, हैलो ब्रदर, वांटेड, पार्टनर, मैं और मिसेज खन्ना जैसी फिल्मों से यह उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं।

संगीतकार जोड़ियां
हुस्नलाल-भगतराम
शंकर-जयकिशन
कल्याणजी-आनंदजी
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल शिव-हरी
सपन-जगमोहन

सोनिक-ओमी
आनंद-मिलिंद
दिलिप सेन-समीर सेन
अमर-उत्पल
उत्तम-जगदीश
नदीम-श्रवण
जतिन-ललित
शंकर-एहसान-लॉय
विशाल-शेखर
साजिद-वाजिद
सलीम-सुलेमान
संजीव-दर्शन
निखिल-विनय
बापी-ततुल
जीतू-तपन

(यह लेखअक्टूबर को दैनिक हिंदुस्तान मैं प्रकाशित हुआ है)

No comments: