Tuesday, December 13, 2011

कैफ़ी आज़मी



मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता

नई ज़मीं नया आसमाँ भी मिल जाये
नये बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता

वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मेरा
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता

वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे
कि जिन में शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता

जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ
यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलता

खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में
तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता

कोई ये कैसे बता ये के वो तन्हा क्यों हैं
वो जो अपना था वो ही और किसी का क्यों हैं
यही दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यों हैं
यही होता हैं तो आखिर यही होता क्यों हैं

एक ज़रा हाथ बढ़ा, दे तो पकड़ लें दामन
उसके सीने में समा जाये हमारी धड़कन
इतनी क़ुर्बत हैं तो फिर फ़ासला इतना क्यों हैं

दिल-ए-बरबाद से निकला नहीं अब तक कोई
एक लुटे घर पे दिया करता हैं दस्तक कोई
आस जो टूट गयी फिर से बंधाता क्यों हैं

तुम मसर्रत का कहो या इसे ग़म का रिश्ता
कहते हैं प्यार का रिश्ता हैं जनम का रिश्ता
हैं जनम का जो ये रिश्ता तो बदलता क्यों हैं

किसी को क्या पता जो महफ़िलों की जान होता है
कभी होता है जब तन्हा तो कितनी देर रोता है

यह दुनिया है यहाँ होती है आसानी भी मुश्किल भी
बुरा भी ख़ूब होता है यहाँ अच्छा भी होता है

तेरी यादों के बादल से गुज़र होता है जब इसका
उदासी का परिंदा मुझसे मिलकर खूब रोता है

किसी को रिश्ते फूलों की तरह महकाए रखते हैं
कोई रिश्तों का भारी बोझ सारी उम्र ढोता है

बढ़ेगी उम्र जब उसकी तब उसका हाल पूछेंगे
अभी तो छोटा बच्चा है सुकूँ की नींद सोता है

‘ज़िया’ क्या शौक है चीज़ें पुरानी जमा करने का
ज़रा-सा दिल है दुनिया भर की यादों को संजोता है
अब तो आते हैं सभी दिल को दुखाने वाले
जाने किस राह गए नाज़ उठाने वाले

क्या गुज़रती है किसी पर यह कहाँ सोचते हैं
कितने बेदर्द हैं ये रूठ के जाने वाले

दर्द उनका कि जो फुटपाथ पे करते हैं बसर
क्या समझ पाएँगे ये राजघराने वाले

इश्क़ में पहले तो बीमार बना देते हैं
फिर पलटते ही नहीं रोग लगाने वाले

पार करता नहीं अब आग का दरिया कोई
थे कोई और जो थे डूब के जाने वाले

लाख तावीज़ बने लाख दुआएँ भी हुईं
मगर आए ही नहीं जो न थे आने वाले

तू भी मिलता है तो मतलब से ही अब मिलता है
लग गए तुझको भी सब रोग ज़माने वाले

अब वो बेलौस मोहब्बत कहाँ मिलती है ‘ज़िया’
लोग मिलते ही नहीं अब वो पुराने वाले

हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा
मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समंदर मेरा

किससे पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ बरसों से
हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा

एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे
मेरी आँखों से कहीं खो गया मंज़र मेरा

मुद्दतें बीत गईं ख़्वाब सुहाना देखे
जागता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा

आईना देखके निकला था मैं घर से बाहर
आज तक हाथ में महफ़ूज़ है पत्थर मेरा


होश वालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िन्दगी क्या चीज़ है

उन से नज़रें क्या मिली रोशन फिजाएँ हो गईं
आज जाना प्यार की जादूगरी क्या चीज़ है

ख़ुलती ज़ुल्फ़ों ने सिखाई मौसमों को शायरी
झुकती आँखों ने बताया मयकशी क्या चीज़ है

हम लबों से कह न पाये उन से हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है

निदा फ़ाज़ली




जब किसी से कोई गिला रखना
सामने अपने आईना रखना

यूँ उजालों से वास्ता रखना
शम्मा के पास ही हवा रखना

घर की तामीर[1] चाहे जैसी हो
इस में रोने की जगह रखना

मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिये
अपने घर में कहीं ख़ुदा रखना

मिलना जुलना जहाँ ज़रूरी हो
मिलने-जुलने का हौसला रखना

निदा फ़ाज़ली


अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये
घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये

जिन चिराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहीं
उन चिराग़ों को हवाओं से बचाया जाये

बाग में जाने के आदाब हुआ करते हैं
किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाये

ख़ुदकुशी करने की हिम्मत नहीं होती सब में
और कुछ दिन यूँ ही औरों को सताया जाये

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये

शेरजंग गर्ग


आदमी की अजब-सी हालत है।
वहशियों में ग़ज़ब की ताक़त है॥

चन्द नंगों ने लूट ली महफ़िल,
और सकते में आज बहुमत है।

अब किसे इस चमन की चिन्ता है,
अब किसे सोचने की फुरसत है?

जिनके पैरों तले ज़मीन नहीं,
उनके सिर पर उसूल की छत है।

रेशमी शब्दजाल का पर्याय,
हर समय, हर जगह सियासत है।

वक़्त के डाकिये के हाथों में,
फिर नए इंक़लाब का ख़त है।


जब तलक ये ज़िन्दगी बाक़ी रहेगी
ज़िन्दगी में तिशनगी बाक़ी रहेगी

सूख जाएंगे जहाँ के सारे दरिया
आँसुओं की ये नदी बाक़ी रहेगी

मेह्रबाँ जब तक हवायें हैं तभी तक
इस दिए में रोशनी बाक़ी रहेगी

कौन दुनिया में मुकम्मल हो सका है
कुछ न कुछ सब में कमी बाक़ी रहेगी

आज का दिन चैन से गुज़रा, मैं खुश हूँ
जाने कब तक ये ख़ुशी बाक़ी रहेगी
जाने कितनी उड़ान बाक़ी है
इस परिन्दे में जान बाक़ी है

जितनी बँटनी थी बँट चुकी ये ज़मीं
अब तो बस आसमान बाक़ी है

अब वो दुनिया अजीब लगती है
जिसमें अम्नो-अमान बाक़ी है

इम्तिहाँ से गुज़र के क्या देखा
इक नया इम्तिहान बाक़ी है

सर कलम होंगे कल यहाँ उनके
जिनके मुँह में ज़ुबान बाकी है

राजेश रेड्डी


ये जो ज़िन्दगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है|
कहीं इक हसीन सा ख़्वाब है कहीं जान-लेवा अज़ाब है|
[अज़ाब=दुखदाई वस्तु/वेदना]

कहीं छँव है कहीं धूप है कहीं और ही कोई रूप है,
कई चेहरे इस में छुपे हुए इक अजीब सी ये नक़ाब है|

कहीं खो दिया कहीं पा लिया कहीं रो लिया कहीं गा लिया,
कहीं छीन लेती है हर ख़ुशी कहीं मेहरबान बेहिसाब है|

कहीं आँसुओं की है दास्ताँ कहीं मुस्कुराहटों का बयाँ,
कहीं बर्क़तों की है बारिशें कहीं तिश्नगी बेहिसाब है|
[बयाँ=बताना या कहना; बर्क़त=समृद्धि; तिश्नगी=प्यास]

Sunday, December 11, 2011

क्‍यों डरें ज़िन्‍दगी में क्‍या होगा
कुछ ना होगा तो तज़रूबा होगा

हँसती आँखों में झाँक कर देखो
कोई आँसू कहीं छुपा होगा

इन दिनों ना-उम्‍मीद सा हूँ मैं
शायद उसने भी ये सुना होगा

देखकर तुमको सोचता हूँ मैं
क्‍या किसी ने तुम्‍हें छुआ होगा


हर ख़ुशी में कोई कमी-सी है
हँसती आँखों में भी नमी-सी है

दिन भी चुप चाप सर झुकाये था
रात की नब्ज़ भी थमी-सी है

किसको समझायें किसकी बात नहीं
ज़हन और दिल में फिर ठनी-सी है

ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई
गर्द इन पलकों पे जमी-सी है

कह गए हम ये किससे दिल की बात
शहर में एक सनसनी-सी है

हसरतें राख हो गईं लेकिन
आग अब भी कहीं दबी-सी है


जावेद अख़्तर

आज मैंने अपना फिर सौदा किया
और फिर मैं दूर से देखा किया

ज़िन्‍दगी भर मेरे काम आए असूल
एक एक करके मैं उन्‍हें बेचा किया

कुछ कमी अपनी वफ़ाओं में भी थी
तुम से क्‍या कहते कि तुमने क्‍या किया

हो गई थी दिल को कुछ उम्‍मीद सी
खैर तुमने जो किया अच्‍छा किया


आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है
ज़ख़्म हर सर पे हर इक हाथ में पत्थर क्यूँ है

जब हक़ीक़त है के हर ज़र्रे में तू रहता है
फिर ज़मीं पर कहीं मस्जिद कहीं मंदिर क्यूँ है

अपना अंजाम तो मालूम है सब को फिर भी
अपनी नज़रों में हर इन्सान सिकंदर क्यूँ है

ज़िन्दगी जीने के क़ाबिल ही नहीं अब "फ़ाकिर"
वर्ना हर आँख में अश्कों का समंदर क्यूँ है


मेरे दुख की कोई दवा न करो
मुझ को मुझ से अभी जुदा न करो



नाख़ुदा को ख़ुदा कहा है तो फिर
डूब जाओ, ख़ुदा ख़ुदा न करो



ये सिखाया है दोस्ती ने हमें
दोस्त बनकर कभी वफ़ा न करो



इश्क़ है इश्क़, ये मज़ाक नहीं
चंद लम्हों में फ़ैसला न करो



आशिक़ी हो या बंदगी 'फ़ाकिर'
बे-दिली से तो इबतिदा न करो

सुदर्शन फ़ाकिर »

हम तो यूँ अपनी ज़िन्दगी से मिले
हम तो यूँ अपनी ज़िन्दगी से मिले अजनबी जैसे अजनबी से मिले
हर वफ़ा एक जुर्म हो गोया दोस्त कुछ ऐसी बेरुख़ी से मिले
फूल ही फूल हम ने माँगे थे दाग़ ही दाग़ ज़िन्दगी से मिले
जिस तरह आप हम से मिलते हैं आदमी यूँ न आदमी से मिले

Saturday, December 3, 2011

कारवां गुज़र गया / गोपालदास "नीरज"

स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पात-पात झर गये कि शाख़-शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क़ बन गए,
छंद हो दफ़न गए,
साथ के सभी दिऐ धुआँ-धुआँ पहन गये,
और हम झुके-झुके,
मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आइना मचल उठा
इस तरफ जमीन और आसमां उधर उठा,
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ,
ऐसी कुछ हवा चली,
लुट गयी कली-कली कि घुट गयी गली-गली,
और हम लुटे-लुटे,
वक्त से पिटे-पिटे,
साँझ की शराब का खुमार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होंठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर,
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गये किले बिखर-बिखर,
और हम डरे-डरे,
नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

माँग भर चली कि एक, जब नई-नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमक उठे चरण-चरण,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयन-नयन,
पर तभी ज़हर भरी,
ग़ाज एक वह गिरी,
पुंछ गया सिंदूर तार-तार हुई चूनरी,
और हम अजान से,
दूर के मकान से,
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

सीमाब अकबराबादी

मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने|
अब गुज़ारेगा मेरे साथ ज़माने कितने|

मैं गिरा था तो बहुत लोग रुके थे लेकिन,
सोचता हूँ मुझे आए थे उठाने कितने|

जिस तरह मैंने तुझे अपना बना रखा है,
सोचते होंगे यही बात न जाने कितने|

तुम नया ज़ख़्म लगाओ तुम्हें इस से क्या है,
भरने वाले हैं अभी ज़ख़्म पुराने कितने|

वसीम बरेलवी

मैं इस उम्मीद पे डूबा के तू बचा लेगा
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा

ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा

मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चराग़ नहीं हूँ जो फिर जला लेगा

कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा

मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी जला लेगा

हज़ार तोड़ के आ जाऊँ उस से रिश्ता वसीम
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा

वसीम बरेलवी

कहाँ तक आँख रोएगी कहाँ तक किसका ग़म होगा

मेरे जैसा यहाँ कोई न कोई रोज़ कम होगा

तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना रो चुका हूँ मैं
कि तू मिल भी अगर जाये तो अब मिलने का ग़म होगा

समन्दर की ग़लतफ़हमी से कोई पूछ तो लेता ,
ज़मीं का हौसला क्या ऐसे तूफ़ानों से कम होगा

मोहब्बत नापने का कोई पैमाना नहीं होता ,
कहीं तू बढ़ भी सकता है, कहीं तू मुझ से कम होगा

वसीम बरेलवी


खुल के मिलने का सलीक़ा आपको आता नहीं
और मेरे पास कोई चोर दरवाज़ा नहीं


वो समझता था, उसे पाकर ही मैं रह जाऊंगा
उसको मेरी प्यास की शिद्दत का अन्दाज़ा नहीं

जा, दिखा दुनिया को, मुझको क्या दिखाता है ग़रूर
तू समन्दर है, तो हो, मैं तो मगर प्यासा नहीं

कोई भी दस्तक करे, आहट हो या आवाज़ दे
मेरे हाथों में मेरा घर तो है, दरवाज़ा नहीं

अपनों को अपना कहा, चाहे किसी दर्जे के हों
और अब ऐसा किया मैंने, तो शरमाया नहीं

उसकी महफ़िल में उन्हीं की रौशनी, जिनके चराग़
मैं भी कुछ होता, तो मेरा भी दिया होता नहीं

तुझसे क्या बिछड़ा, मेरी सारी हक़ीक़त खुल गयी
अब कोई मौसम मिले, तो मुझसे शरमाता नहीं

वसीम बरेलवी


आते-आते मेरा नाम सा रह गया
उस के होंठों पे कुछ काँपता रह गया

वो मेरे सामने ही गया और मैं
रास्ते की तरह देखता रह गया

झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गये
और मैं था कि सच बोलता रह गया

आँधियों के इरादे तो अच्छे न थे
ये दिया कैसे जलता रह गया

Bachchan

वृक्ष हों भले खड़े,

हों घने हों बड़े,

एक पत्र छांह भी,

मांग मत, मांग मत, मांग मत,

अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ


तू न थकेगा कभी,

तू न रुकेगा कभी,

तू न मुड़ेगा कभी,

कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,

अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ


यह महान दृश्य है,

चल रहा मनुष्य है,

अश्रु श्वेत रक्त से,

लथपथ लथपथ लथपथ,

अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ


आ रहे हैं मुझको समझाने बहुत
अक़्ल वाले कम हैं दीवाने बहुत

साक़िया हम को मुरव्वत चाहिए
शहर में हैं वरना मयखाने बहुत

क्या तग़ाफ़ुल का अजब अन्दाज़ है
जान कर बनते हैं अंजाने बहुत

हम तो दीवाने सही नासेह मगर
हमने भी देखे हैं फ़रज़ाने बहुत

आप भी आएं किसे इनकार है
आए हैं पहले भी समझाने बहुत

ये हक़ीक़्त है कि मुझ को प्यार है
इस हक़ीक़त के हैं अफ़साने बहुत

ये जिगर, ये दिल, ये नींदें, ये क़रार
इश्क़ में देने हैं नज़राने बहुत

ये दयार-ए-इश्क़ है इसमें सहर
बस्तियाँ कम कम हैं वीराने बहुत


वो दिल ही क्या तेरे मिलने की जो दुआ न करे
मैं तुझको भूल के ज़िंदा रहूँ ख़ुदा न करे

रहेगा साथ तेरा प्यार ज़िन्दगी बनकर
ये और बात मेरी ज़िन्दगी वफ़ा न करे

ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में
ख़ुदा किसी से किसी को मगर जुदा न करे

सुना है उसको मोहब्बत दुआयें देती है
जो दिल पे चोट तो खाये मगर गिला न करे

ज़माना देख चुका है परख चुका है उसे
"क़तील" जान से जाये पर इल्तजा न करे

अशोक अंजुम

करे कोशिश अगर इंसान तो क्याक्या नहीं मिलता
वो उठकर चल के तो देखे जिस रस्ता नहीं मिलता !

भले ही धूप हो, कांटे हों पर चलना ही प़डता है
किसी प्यासे को घर बैठे कभी दरिया नहीं मिलता !

कहें क्या ऐसे लोगों से जो कहकर ल़डख़डाते हैं
कि हम आकाश छू लेते मगर मौका नहीं मिलता !

कमी कुछ चाल में होगी, कमी होगी इरादों में
जो कहते कामयाबी का हमें नक्शा नहीं मिलता!

हम अपने आप पर यारो भरोसा करके तो देखें
कभी भी ग़िडग़िडाने से कोई रुतबा नहीं मिलता!

Friday, December 2, 2011

वसीम बरेलवी


अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक नज़र आयें कैसे

घर सजाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है
पहले ये तय हो कि इस घर को बचायें कैसे

क़हक़हा आँख का बरताव बदल देता है
हँसनेवाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे

कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा
एक क़तरे को समुन्दर नज़र आयें कैसे

Friday, November 25, 2011

राम गोपाल भारतीय

वफ़ा का ज़िम्मा किसी एक पर नहीं होता
दिलों में फ़ासले लेकर सफ़र नहीं होता

किसी का टूट गया दिल तुम्हे पता ही नहीं
कोई भी दोस्त हो यूँ बेख़बर नहीं होता

किसी का बसता हुआ घर उजाड़ने वालो
हरेक शख़्स की क़िस्मत में घर नहीं होता

दिलों के बीच मुक़दमा भी क्या मुक़दमा है
की जिसका फ़ैसला सारी उमर नहीं होता

हरेक बात उड़ा देता है वो बातों में
किसी भी बात का उस पर असर नहीं होता

राम गोपाल भारतीय


तेरा ख़याल जो मेरा ख़याल हो जाए
तो ख़त्म तेरा-मेरा हर सवाल हो जाए

जुड़े हो काश हमारे-तुम्हारे दिल ऐसे
सितम हो तुझपे मेरी आँख लाल हो जाए

किसी अमीर की ख़ुशियों से ऐतराज़ नहीं
ख़ुशी ग़रीब की भी तो बहाल हो जाए

न चाँद तारे न सूरज की ज़रूरत है मुझे
मेरे चिराग़ की बस देखभाल हो जाए

मै अपने ख़ून की स्याही से इन्क़लाब लिखूँ
ख़ुदाया मेरी क़लम इक मशाल हो जाए

ख़ुदा के वास्ते इतना भी तुम करम न करो
मै बेकमाल रहूँ और कमाल हो जाए

राम गोपाल भारतीय

मुस्कुराते ग़र रहोगे और पास आएँगे लोग
तुम अगर रोने लगोगे दूर हट जाएँगे लोग

आज भोलेपन की क़ीमत ये भला समझंगे क्या
एक दिन खो देंगे तुझको और पछ्ताएँगे लोग

साँप अब डसने लगे है आस्तीनों से निकल
और कब तक दोस्त बनकर हमको बहलाएँगे लोग

हर गली, हर मोड़ पर, तैयार बेठे है सभी
आइना दिखलाओगे तो ईंट बरसाएँगे लोग

हादसे में जल गया है जिसके सपनो का जहाँ
वो भला समझेगा कैसे, कैसे समझाएँगे लोग

अब कोई समझे न समझे लेखनी के दर्द को
एक न एक दिन तो हमारे गीत दोहराएँगे लोग

राम गोपाल भारतीय


किसी की आँख में आँसू सजाकर
बहुत पछताओगे यूँ मुस्कुराकर

तुम उसके पाँव के छाले तो देखो
कहीं वो गिर न जाए डगमगाकर

तेरी शोहरत तेरा धन-माल इक दिन
हवा ले जाएगी पल में उड़ाकर

वही देता है अक्सर चोट दिल को
जिसे हम देखते हैं आज़माकर

हमारे सर की भी क़ीमत है कोई
जिसे हम जान पाए सर गँवाकर

बड़ा अच्छा था उनसे फ़ासला था
बहुत पछताए हम नज़दीक आकर

हस्तीमल 'हस्ती'

साया बनकर साथ चलेंगे इसके भरोसे मत रहना
अपने हमेशा अपने रहेंगे इसके भरोसे मत रहना

सावन का महीना आते ही बादल तो छा जाएँगे
हर हाल में लेकिन बरसेंगे इसके भरोसे मत रहना

सूरज की मानिंद सफ़र पे रोज़ निकलना पड़ता है
बैठे-बैठे दिन बदलेंगे इसके भरोसे मत रहना

बहती नदी में कच्चे घड़े हैं रिश्ते, नाते, हुस्न, वफ़ा
दूर तलक ये बहते रहेंगे इसके भरोसे मत रहना

Hasimal Hasti

काम करेगी उसकी धार
बाकी लोहा है बेकार

कैसे बच सकता था मैं
पीछे ठग थे आगे यार

बोरी भर मेहनत पीसूँ
निकले इक मुट्ठी भर सार

भूखे को पकवान लगें
चटनी, रोटी, प्याज, अचार

जीवन है इक ऐसी डोर
गाठें जिसमें कई हजार


शुक्र है राजा मान गया
दो दूनी होते हैं चार

Hastimal Hasti

औरों का भी ख़्याल कभी था अभी नहीं
इंसान इक मिसाल कभी था अभी नहीं

पत्थर भी तैर जाते थे तिनकों की ही तरह
चाहत में वो कमाल कभी था अभी नहीं

क्यों मैंने अपने ऐब छिपा कर नहीं रखे
इसका मुझे मलाल कभी था अभी नहीं

क्या होगा कायनात का गर सच नहीं रहा
हर दिल में ये ख़्याल कभी था अभी नहीं

क्यों दूर-दूर रहते हो पास आओ दोस्तों
ये ‘हस्ती’ तंग-हाल कभी था अभी नहीं

Hastimal Hasti

चिराग हो के न हो दिल जला के रखते हैं
हम आँधियों में भी तेवर बला के रखते हैं

मिला दिया है पसीना भले ही मिट्टी में
हम अपनी आँख का पानी बचा के रखतें हैं

बस एक ख़ुद से ही अपनी नहीं बनी वरना
ज़माने भर से हमेशा बना के रखतें हैं

हमें पसंद नहीं जंग में भी चालाकी
जिसे निशाने पे रक्खें बता के रखते हैं

कहीं ख़ूलूस कहीं दोस्ती कहीं पे वफ़ा
बड़े करीने से घर को सजा के रखते हैं

Parveen Shakir

कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
उस ने ख़ुश्बू की तरह मेरी पज़ीराई की

कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की

वो कहीं भी गया लौटा तो मेरे पास आया
बस यही बात है अच्छी मेरे हरजाई की

तेरा पहलू तेरे दिल की तरह आबाद रहे
तुझ पे गुज़रे न क़यामत शब-ए-तन्हाई की

उस ने जलती हुई पेशानी पे जो हाथ रखा
रूह तक आ गई तासीर मसीहाई की

Neeraj

दूर से दूर तलक एक भी दरख्त न था|
तुम्हारे घर का सफ़र इस क़दर सख्त न था|

इतने मसरूफ़ थे हम जाने के तैयारी में,
खड़े थे तुम और तुम्हें देखने का वक्त न था|

मैं जिस की खोज में ख़ुद खो गया था मेले में,
कहीं वो मेरा ही एहसास तो कमबख्त न था|

जो ज़ुल्म सह के भी चुप रह गया न ख़ौल उठा,
वो और कुछ हो मगर आदमी का रक्त न था|

उन्हीं फ़क़ीरों ने इतिहास बनाया है यहाँ,
जिन पे इतिहास को लिखने के लिए वक्त न था|

शराब कर के पिया उस ने ज़हर जीवन भर,
हमारे शहर में 'नीरज' सा कोई मस्त न था|

Friday, August 26, 2011

ghazal

  1. किसी भी झील से हँसते कमल निकालता हूं
    मैं हर ज़मीन में अच्छी ग़ज़ल निकालता हूं

  2. चलो कि मैं ही जलाता हूं ख़ून से ये चराग़
    चलो कि मैं ही अंधेरे का हल निकालता हूं

  3. बना के बांध तुझे झील करके छोड़ूंगा
    ज़रा सा ठहर नदी तेरे बल निकालता हूं

  4. ये हो भी सकता है इस बार दांव लग जाए

  5. मैं पांसे फेंक के फिर से रमल निकालता...

Monday, February 14, 2011

टैरेस गार्डन: इस शौक का अंदाजे बयां और
सुबोध भारतीय
First Published:14-02-11 02:01 PM
Last Updated:14-02-11 02:04 PM
ई-मेल Image Loadingप्रिंट टिप्पणियॉ: Image Loadingपढे Image Loadingलिखे (0) अ+ अ-

अपने घर की बालकनी में बैठकर चाय पीने का मजा ही कुछ और होता है। और अगर ऐसे में आपकी छत या बालकनी पर टैरेस गार्डन बना हो तो उन चुस्कियों का मजा ही दूना हो जाएगा। तो क्यों न हम अपनी छत या बालकनी पर एक ऐसा टैरेस गार्डन बनाएं, जिससे हम चाय की चुस्कियों के साथ-साथ प्रकृति का भी आनन्द ले सकें। बस जरूरत है अपनी कल्पना शक्ति की। वैसे भी अगर आप हरियाली से दूर हैं तो अपनी छत या बालकनी को टैरेस गार्डन का रूप दे सकते हैं। कैसे, आइये एक नजर डालते हैं

टैरेस गार्डन यानी छत पर हरियाली। टैरेस गार्डन बनाने के लिए छत पर घास उगाना जरूरी नहीं। छत के फर्श की अच्छी वॉटर प्रूफिंग करवाने के बाद किसी भी आकार की छत या उसके हिस्से को आसानी से टैरेस गार्डन का रूप दिया जा सकता है। यदि आपकी बालकनी चार-पांच सौ वर्ग फुट की है तो उसे भी टैरेस गार्डन के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।

आसान तरीका

छत पर गार्डन बनाने के लिए आप छत के चारों ओर पैरागोल बनवाएं। इसमें एक स्टील का ढांचा होता है, जिसमें लटकने वाले गमले लटका दिये जाते हैं। यह गमले बास्केट टाइप के होते हैं। इन बास्केट्स में जेड, बटन कैक्टस के अलावा अन्य लटकने वाले पौधे भी उगाए जाते हैं। इससे छत के चारों ओर हरियाली हो जाएगी। पैरागोल के ऊपर हरे रंग का प्लास्टिक का मेश (जाली) बिछाने से ग्रीन हाउस तैयार हो जाएगा। नीचे फर्श पर इनडोर प्लांट्स के गमले लगाने चाहिए। इनमें कछुए, मेंढक, हाथी आदि के आकार के मिट्टी के गमले लगा देने से सुंदरता बढ़ जाएगी। दीवार पर कुछ रॉट आयरन के स्टैण्ड्स व हुक भी लगाए जा सकते हैं, जिनमें छोटे-छोटे गमले लटकाए जा सकते हैं।

फर्श पर सेरेमिक, ग्रेनाइट्स व गजीबो लगा कर बेहतरीन लुक दिया जा सकता है। जिन लोगों को लैंड- स्केपिंग अच्छी लगती है और कृत्रिम झरने आदि लगाना चाहते हैं, वह एक अच्छे लैंडस्केपिंग आर्किटेक्स से यह कार्य करवा सकते हैं। इसमें फाउंटेन और मूर्तियों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

स्थायी रूप

स्थायी रूप से टैरेस गार्डन बनाने की प्लानिंग आपको घर के निर्माण के साथ ही करनी होगी, क्योंकि इसकी छत जिस पर गार्डन का आधार बनाया जाएगा, बहुत मजबूत और इस योग्य होनी चाहिए कि वह लोड ले सके। पानी की निकासी के लिए ढलान भी होनी आवश्यक है। स्थायी टैरेस गार्डन में फर्श पर घास भी उगाई जा सकती है। प्रसिद्ध लैंडस्केपिंग आर्किटेक्ट दिनेश भारद्वाज के अनुसार, स्थाई टैरेस गार्डन बनाते समय सबसे जरूरी वॉटर प्रूफिंग है। टैरेस गार्डन के फर्श की सात लेयर वॉटरप्रूफिंग टीटमेंट होती है। वॉटर प्रूफिंग वाली छत के निर्माण के दौरान ही वॉटर ड्रेनेज सिस्टम बना लिया जाता है, जिससे कभी भी फर्श में पानी न रुके।

एक बार वॉटर प्रूफिंग होने के बाद आप उस पर मिट्टी डाल कर घास उगा सकते हैं और छोटे-छोटे पौधे भी। कुछ लोग बोन्साई पेड़ भी उगाते हैं, जिन्हें कई वास्तुशास्त्री उचित नहीं मानते। जापानी व चाइना शैली में टपोरी प्लांट भी उगाए जा सकते हैं। हरा बांस, डांसिंग और गोल्डन बैम्बू व फाइकस टैरेस गार्डन में अक्सर लगाए जाते हैं।

आपके टैरेस गार्डन में हरियाली तो छा गई, मगर बहार आएगी फूलों के रंगों से। गेंदा, गुलाब, गुलदाऊदी आदि फूलों की रंगीन छटा गार्डन की सुन्दरता कई गुना बढ़ा देगी। इसी प्रकार चम्पा, चमेली, जूही और मौलसिरी की लताएं टैरेस गार्डन को सम्पूर्णता प्रदान करती हैं।

लाइटिंग

टैरेस गार्डन में लाइटिंग का भी बहुत बड़ा योगदान है। शाम के धुंधलके के साथ जब रात जवान होती है तो रोशनी का खूबसूरत संयोजन माहौल को और भी खुशनुमा बना देता है। प्लास्टिक, वुड और रॉट आयरन का गार्डन फर्नीचर टैरेस गार्डन का अभिन्न अंग है। इसका चयन अपनी अभिरुचि के अनुसार करें। पीने-पिलाने के शौकीन अपना एक छोटा सा बार भी यहीं बना सकते हैं।

आपका टैरेस गार्डन कितना सुंदर है, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आपके मेहमान आपके ड्राइंग रूम में बैठना पसंद करते हैं अथवा आपके टैरेस गार्डन में बैठने का हठ करते हैं। वैसे कभी-कभार बिन बुलाए मेहमानों जैसे तोता, मोर आदि का आगमन भी आपको खुशी देगा और इस बात की पुष्टि भी करेगा कि आपका गार्डन सही बना है। इनके स्वागत के लिए पीने के पानी के सुंदर से बर्तन अवश्य सजाएं। ये बातें जरूर ध्यान रखें

सबसे पहले यह सुनिश्चित करें कि आपके घर की छत मजबूत हो और वह गार्डन का लोड ले सके।

छत पर ऐसी ढलान होनी आवश्यक है, जिससे पानी की निकासी हो सके।

स्थायी टैरेस गार्डन बनाने के लिए छत पर सेवन लेयर्स की वॉटर प्रूफिंग किसी विशेषज्ञ से करवानी चाहिए।

अधिक धूप से पौधों को बचाने के लिए ग्रीन हाउस बनाएं।

टैरेस गार्डन बनाते समय अपनी कल्पनाशक्ति का भरपूर उपयोग करें और इनमें पौधों, फूलों और पत्थरों का भी खूबसूरत संयोजन करें।

टैरेस गार्डन: इस शौक का अंदाजे बयां और
सुबोध भारतीय
First Published:14-02-11 02:01 PM
Last Updated:14-02-11 02:04 PM
ई-मेल Image Loadingप्रिंट टिप्पणियॉ: Image Loadingपढे Image Loadingलिखे (0) अ+ अ-

अपने घर की बालकनी में बैठकर चाय पीने का मजा ही कुछ और होता है। और अगर ऐसे में आपकी छत या बालकनी पर टैरेस गार्डन बना हो तो उन चुस्कियों का मजा ही दूना हो जाएगा। तो क्यों न हम अपनी छत या बालकनी पर एक ऐसा टैरेस गार्डन बनाएं, जिससे हम चाय की चुस्कियों के साथ-साथ प्रकृति का भी आनन्द ले सकें। बस जरूरत है अपनी कल्पना शक्ति की। वैसे भी अगर आप हरियाली से दूर हैं तो अपनी छत या बालकनी को टैरेस गार्डन का रूप दे सकते हैं। कैसे, आइये एक नजर डालते हैं

टैरेस गार्डन यानी छत पर हरियाली। टैरेस गार्डन बनाने के लिए छत पर घास उगाना जरूरी नहीं। छत के फर्श की अच्छी वॉटर प्रूफिंग करवाने के बाद किसी भी आकार की छत या उसके हिस्से को आसानी से टैरेस गार्डन का रूप दिया जा सकता है। यदि आपकी बालकनी चार-पांच सौ वर्ग फुट की है तो उसे भी टैरेस गार्डन के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।

आसान तरीका

छत पर गार्डन बनाने के लिए आप छत के चारों ओर पैरागोल बनवाएं। इसमें एक स्टील का ढांचा होता है, जिसमें लटकने वाले गमले लटका दिये जाते हैं। यह गमले बास्केट टाइप के होते हैं। इन बास्केट्स में जेड, बटन कैक्टस के अलावा अन्य लटकने वाले पौधे भी उगाए जाते हैं। इससे छत के चारों ओर हरियाली हो जाएगी। पैरागोल के ऊपर हरे रंग का प्लास्टिक का मेश (जाली) बिछाने से ग्रीन हाउस तैयार हो जाएगा। नीचे फर्श पर इनडोर प्लांट्स के गमले लगाने चाहिए। इनमें कछुए, मेंढक, हाथी आदि के आकार के मिट्टी के गमले लगा देने से सुंदरता बढ़ जाएगी। दीवार पर कुछ रॉट आयरन के स्टैण्ड्स व हुक भी लगाए जा सकते हैं, जिनमें छोटे-छोटे गमले लटकाए जा सकते हैं।

फर्श पर सेरेमिक, ग्रेनाइट्स व गजीबो लगा कर बेहतरीन लुक दिया जा सकता है। जिन लोगों को लैंड- स्केपिंग अच्छी लगती है और कृत्रिम झरने आदि लगाना चाहते हैं, वह एक अच्छे लैंडस्केपिंग आर्किटेक्स से यह कार्य करवा सकते हैं। इसमें फाउंटेन और मूर्तियों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

स्थायी रूप

स्थायी रूप से टैरेस गार्डन बनाने की प्लानिंग आपको घर के निर्माण के साथ ही करनी होगी, क्योंकि इसकी छत जिस पर गार्डन का आधार बनाया जाएगा, बहुत मजबूत और इस योग्य होनी चाहिए कि वह लोड ले सके। पानी की निकासी के लिए ढलान भी होनी आवश्यक है। स्थायी टैरेस गार्डन में फर्श पर घास भी उगाई जा सकती है। प्रसिद्ध लैंडस्केपिंग आर्किटेक्ट दिनेश भारद्वाज के अनुसार, स्थाई टैरेस गार्डन बनाते समय सबसे जरूरी वॉटर प्रूफिंग है। टैरेस गार्डन के फर्श की सात लेयर वॉटरप्रूफिंग टीटमेंट होती है। वॉटर प्रूफिंग वाली छत के निर्माण के दौरान ही वॉटर ड्रेनेज सिस्टम बना लिया जाता है, जिससे कभी भी फर्श में पानी न रुके।

एक बार वॉटर प्रूफिंग होने के बाद आप उस पर मिट्टी डाल कर घास उगा सकते हैं और छोटे-छोटे पौधे भी। कुछ लोग बोन्साई पेड़ भी उगाते हैं, जिन्हें कई वास्तुशास्त्री उचित नहीं मानते। जापानी व चाइना शैली में टपोरी प्लांट भी उगाए जा सकते हैं। हरा बांस, डांसिंग और गोल्डन बैम्बू व फाइकस टैरेस गार्डन में अक्सर लगाए जाते हैं।

आपके टैरेस गार्डन में हरियाली तो छा गई, मगर बहार आएगी फूलों के रंगों से। गेंदा, गुलाब, गुलदाऊदी आदि फूलों की रंगीन छटा गार्डन की सुन्दरता कई गुना बढ़ा देगी। इसी प्रकार चम्पा, चमेली, जूही और मौलसिरी की लताएं टैरेस गार्डन को सम्पूर्णता प्रदान करती हैं।

लाइटिंग

टैरेस गार्डन में लाइटिंग का भी बहुत बड़ा योगदान है। शाम के धुंधलके के साथ जब रात जवान होती है तो रोशनी का खूबसूरत संयोजन माहौल को और भी खुशनुमा बना देता है। प्लास्टिक, वुड और रॉट आयरन का गार्डन फर्नीचर टैरेस गार्डन का अभिन्न अंग है। इसका चयन अपनी अभिरुचि के अनुसार करें। पीने-पिलाने के शौकीन अपना एक छोटा सा बार भी यहीं बना सकते हैं।

आपका टैरेस गार्डन कितना सुंदर है, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आपके मेहमान आपके ड्राइंग रूम में बैठना पसंद करते हैं अथवा आपके टैरेस गार्डन में बैठने का हठ करते हैं। वैसे कभी-कभार बिन बुलाए मेहमानों जैसे तोता, मोर आदि का आगमन भी आपको खुशी देगा और इस बात की पुष्टि भी करेगा कि आपका गार्डन सही बना है। इनके स्वागत के लिए पीने के पानी के सुंदर से बर्तन अवश्य सजाएं। ये बातें जरूर ध्यान रखें

सबसे पहले यह सुनिश्चित करें कि आपके घर की छत मजबूत हो और वह गार्डन का लोड ले सके।

छत पर ऐसी ढलान होनी आवश्यक है, जिससे पानी की निकासी हो सके।

स्थायी टैरेस गार्डन बनाने के लिए छत पर सेवन लेयर्स की वॉटर प्रूफिंग किसी विशेषज्ञ से करवानी चाहिए।

अधिक धूप से पौधों को बचाने के लिए ग्रीन हाउस बनाएं।

टैरेस गार्डन बनाते समय अपनी कल्पनाशक्ति का भरपूर उपयोग करें और इनमें पौधों, फूलों और पत्थरों का भी खूबसूरत संयोजन करें।

Saturday, January 15, 2011


Image Loading अन्य फोटो
धर्म और मजहब से ऊपर है बॉलीवुड का हब
सुबोध भारतीय
First Published:14-01-11 01:28 PM
Last Updated:14-01-11 01:29 PM
ई-मेल Image Loadingप्रिंट टिप्पणियॉ: Image Loadingपढे Image Loadingलिखे (0) अ+ अ-

यह बॉलीवुड ही है, जिसमें कभी भी धर्म के नाम पर इंडस्ट्री में कभी कोई बात नहीं उठी, कलाकार की कला ही ऊपर रखी गई। राजकपूर-नरगिस, गुरुदत्त-वहीदा रहमान की जोड़ी हो या देव आनंद-सुरैया की, जनता ने इन्हें सर आंखों पर रखा। आधुनिक दौर में भी शाहरूख-काजोल, सलमान-करिश्मा और सैफ अली-करीना की जोड़ियां कम हिट नहीं रही हैं।

बॉलीवुड में हिन्दू-मुस्लिम कलाकारों में प्रेम संबंध शुरु से ही रहे हैं। राजकपूर विवाहित थे मगर नरगिस से उनके प्रेम संबंध जग जाहिर थे। देवानंद से सुरैया मरते दम तक प्यार करती रहीं और अविवाहित रहीं।

बॉलीवुड ने हर दौर में धर्म-मजहब से ऊपर उठ कर समाज के सामने सांप्रदायिक सौहार्द बनाने की कारगर कोशिश की है और इन कोशिशों को जनता ने तहे-दिल से स्वीकार भी किया। ऐसे फिल्मों और कार्यक्रमों की शानदार लोकप्रियता इस बात का सबूत है कि मनोरंजन और कला में मजहब का कोई रोल नहीं होता। जनता कला और कलाकार से ही प्रेम करती है, उसके हिन्दू या मुस्लिम होने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।

मगर शुरू से ऐसा नहीं था। विभाजन से पूर्व लाहौर पंजाबी कलाकारों का गढ़ था तो कलकत्ता बंगाली कलाकारों का। बम्बई में सभी के लिए दरवाजे खुले थे, मगर विभाजन के दौरान हुए धार्मिक दंगों और मारकाट के बाद बम्बई में रह गए कलाकारों के लिए अपने मूल मुस्लिम नामों को रखना सेफ नहीं माना जाता था। यही वजह थी कि यूसुफ खान को दिलीप कुमार बनना पड़ा और हामिद को अजीत। माहजबी बानो मीना कुमारी बनीं और मुमताज बेगम मधुबाला। मगर यह आशंकाएं बेकार साबित हुईं, क्योंकि सुरैया और नरगिस अपने मुस्लिम नामों के बावजूद सुपरस्टार थीं और आज तो यह आलम है कि शाहरुख खान, आमिर खान, सलमान खान और सैफ अली खान के बिना बॉलीवुड की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

सुरैया की नानी ने भले ही देवानंद के हिन्दू होने की आड़ लेकर उनकी शादी नहीं होने दी, दिलीप कुमार और मधुबाला की प्रेम कहानी में ऐसी कोई अड़चन नहीं थी। फिर भी मधुबाला की नानी ने ये शादी नहीं होने दी, क्योंकि मधुबाला उस समय पैसे कमाने वाली स्टार थीं। बाद में मधुबाला के करियर के अंतिम दौर में उन्हें किशोर कुमार का सहारा मिला। किशोर ने यह जानते हुए कि मधुबाला दिल की मरीज हैं और थोड़े समय की ही मेहमान हैं, उनसे शादी की और उनसे प्यार करते रहे।
इसी प्रकार राजकपूर-नरगिस के प्रेम संबंध तब तक ही बने रहे, जब तक मदर इंडिया की शूटिंग के दौरान हुए हादसे के बाद नरगिस ने सुनील दत्त से शादी नहीं कर ली। इनकी वैवाहिक जोड़ी फिल्मी दुनिया की सबसे सफल जोड़ियों में गिनी जाती थी। इनके पुत्र संजय दत्त की भी दूसरी शादी दिलनवाज से हुई, जिसका नाम मान्यता रखा गया।

नासिर खान अपने समय के नामी-गिरामी प्रोड्यूसर-डायरेक्टर थे। आशा पारिख को उन्होंने ही ब्रेक दिया था। ताउम्र उनके प्रेम में पड़ने के बावजूद वह उनसे शादी नहीं कर पाईं, क्योंकि वह पहले से विवाहित थे। आज नासिर खान हमारे बीच नहीं है मगर कुंवारी आशा पारिख अब भी उनके परिवार का ख्याल रख कर अपना कर्त्तव्य निभा रही हैं।

पटौदी के नवाब मसूर अली खान भारतीय क्रिकेट के लोकप्रिय कप्तान थे और शर्मिला टैगोर फिल्म दुनिया की खूबसूरत और बेहतरीन अदाकारा। जब इनके बीच प्रेम-अंकुर फूटा तो उसे विवाह संबंध में बदलते देर न लगी। शादी के 41 साल बाद आज भी यह अटूट बंधन में बंधे हैं। इनके साहबजादे सैफ अली खान ने अपने लिए सिख अभिनेत्री अमृता सिंह को चुना। शादी के 13 साल बाद हालांकि इनका तलाक हो चुका है। आजकल इनका रोमांस करीना कपूर से चल रहा है और शादी की संभावना भी है।

सलीम-जावेद की जोड़ी फिल्म इंडस्ट्री की सबसे कामयाब स्क्रीन प्ले राइटर जोड़ी रही है। मगर एक और चीज इनके बीच कॉमन है, इनके परिवार में गैर मुस्लिम सदस्यों का होना। सलीम खान ने पहली शादी मराठन सुशीला चरक (अब सलमा) से की थी और दूसरी ईसाई हेलन से। सलीम के दूसरे पुत्र अरबाज की शादी मलायका अरोड़ा से हुई और सबसे छोटे सोहेल की सीमा से। सलीम खान ने एक हिन्दू लड़की अर्पिता को भी गोद लिया हुआ है, जबकि उनकी बड़ी बेटी अलवीरा की शादी अतुल अग्निहोत्री से हुई है। सलीम खान के बंगले में ईद से लेकर गणेश चतुर्थी तक सभी त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं, जिसमें इनके तीनों पुत्र सलमान, अरबाज और सोहेल खान बढ़-चढ़ कर शिरकत करते हैं।

सलीम खान के जोड़ीदार जावेद अख्तर का पहला विवाह भी पारसी हनी ईरानी से हुआ था, जिनकी संतान फरहान और जोया अख्तर हैं। फरहान ने अपनी जीवन संगिनी हेयर ड्रेसर अधुना को बनाया, जो एक हिन्दू परिवार से है। शाहरुख खान को दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल में पढ़ते हुए ही गौरी से प्यार हो गया था, मगर शादी के लिए उनके परिवार को मनाने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़े। अंतत प्यार की जीत हुई। शाहरुख के बंगले मन्नत में होली-दीपावली, ईद से भी ज्यादा धूमधाम से मनाई जाती है।

राकेश रोशन के पड़ोस में रह रहे संजय खान ने शायद ही कभी सोचा होगा कि वह समधी बन जाएंगे। ऋतिक रोशन सुपर स्टार बनने से पहले ही अपना दिल संजय खान की बेटी सुजैन को दे चुके थे। कहो न प्यार है के हिट होते ही यह विवाह बंधन में बंध गए। आज दो पुत्रों के पिता हैं।

आमिर खान ने शादी का लड्डू दो बार चखा और दोनों बार उन्होंने हिन्दू पत्नी चुनी। रीना जुत्शी उनकी पहली पत्नी थीं, जिनके साथ 15 वर्षीय वैवाहिक जीवन बिताने के बाद उन्होंने एक पत्रकार किरन को अपनी जीवन संगिनी बनाया। पंकज कपूर की पहली शादी नीलिमा अजीम से हुई थी। दोनों स्टेज के साथी थे, प्रेम हुआ शादी हुई- शाहिद कपूर इन्हीं की संतान हैं। हालांकि बाद में इनका तलाक हो गया। बेहतरीन अदाकार नसीरूद्दीन शाह की पहली पत्नी मुस्लिम थीं, मगर ज्यादा निभी नहीं और पिछले बीस वर्षों से रत्ना पाठक के साथ सुखी वैवाहिक जीवन बिता रहे हैं।

(यह लेख हिंदुस्तान के रीमिक्स में १५ जनवरी २०११ को प्रकाशित हुआ है)