Monday, February 13, 2012

कुछ लोग यहाँ मंज़िलें पाने के लिए थे
हम जैसे फ़क़त ख़ाक उड़ाने के लिए थे

तुमने जो क़िताबों के हवाले किए जानाँ
वो फूल तो बालों में सजाने के लिए थे

एक उम्र गुज़रने पे खुला राज़ यह हम पर
हम लोग किसी और ज़माने के लिए थे

मैं जाने कहाँ रख के उन्हें भूल गया हूँ
वो शेर जो बस तुमको सुनाने के लिए थे

कुछ ख़्वाहिशें बस दिल को दुखाने के लिए थीं
कुछ ख़्वाब फ़क़त नींद उड़ाने के लिए थे

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