Tuesday, December 13, 2011

राजेश रेड्डी


ये जो ज़िन्दगी की किताब है ये किताब भी क्या किताब है|
कहीं इक हसीन सा ख़्वाब है कहीं जान-लेवा अज़ाब है|
[अज़ाब=दुखदाई वस्तु/वेदना]

कहीं छँव है कहीं धूप है कहीं और ही कोई रूप है,
कई चेहरे इस में छुपे हुए इक अजीब सी ये नक़ाब है|

कहीं खो दिया कहीं पा लिया कहीं रो लिया कहीं गा लिया,
कहीं छीन लेती है हर ख़ुशी कहीं मेहरबान बेहिसाब है|

कहीं आँसुओं की है दास्ताँ कहीं मुस्कुराहटों का बयाँ,
कहीं बर्क़तों की है बारिशें कहीं तिश्नगी बेहिसाब है|
[बयाँ=बताना या कहना; बर्क़त=समृद्धि; तिश्नगी=प्यास]

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