Sunday, December 11, 2011

क्‍यों डरें ज़िन्‍दगी में क्‍या होगा
कुछ ना होगा तो तज़रूबा होगा

हँसती आँखों में झाँक कर देखो
कोई आँसू कहीं छुपा होगा

इन दिनों ना-उम्‍मीद सा हूँ मैं
शायद उसने भी ये सुना होगा

देखकर तुमको सोचता हूँ मैं
क्‍या किसी ने तुम्‍हें छुआ होगा


1 comment:

Pallavi saxena said...

क्यूँ डरें ज़िंदगी में क्या होगा
कुछ न हुआ तो तजुरबा होगा
वाहा क्या बात है बहुत खूब लिखा है आपने बधाई!! समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है। http://mhare-anubhav.blogspot.com/