Friday, February 26, 2016

मैंने १५ वर्ष की आयु से जातीय पहचान वार्ष्णेय या गुप्ता हटा कर भारतीय लिखना शुरू किया था, जिस पर मैं आज भी कायम हूँ. मेरी संतान ने भी इसे अपनाया है और पत्नी ने भी. मेरे २ और दोस्तों ने भी इसे अपनाया था मगर सरकारी नौकरी मिलते ही उन्होंने इसे तिलांजलि दे दी. पिछले ४० वर्षों के दौरान मुझे कई बार इस नाम की वजह से हंसी का पात्र भी बनना पड़ा और कई लोगों ने ये भी कहा और समझा की शायद मैं किसी नीची जाति से ताल्लुक रखने की वजह से भारतीय लिखता हूँ मैंने इसका कोई विरोध नहीं किया क्योंकि मेरे लिए कोई जाति नीची नहीं. इसके विपरीत कई लोगों ने मुझे भरतिया भी समझा जो की मारवाड़ियों की एक ऊंची जमात होती है जिसका मैंने सदा यह कह कर सुधार किया की मैं भारतीय हूँ भरतिया नहीं. मेरे मानस और विचारों पर इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा क्योंकि मेरे लिए राष्ट्रीयता जाति से बड़ी है और बड़ी रहेगी. मैं एक शाकाहारी व्यक्ति हूँ और मुझे मांसाहार करने वाले लोगों से कोई नफरत नहीं है और न ही मैं उन्हें शाकाहार के फायदे गिनवाने में यकीन रखता हूँ. मैं न दक्षिणपंथी हूँ न चरमपंथी. जो कुछ भी राष्ट्रहित में है मैं उसका समर्थन करता हूँ. मुझे केजरीवाल से घृणा नहीं न ही मोदी से प्यार है. कोई भी नेता देश हित की बात करे मेरा उसे समर्थन है. मेरे भारतीय उपनाम रखने से मैं आपसे ज़्यादा देशभक्त नहीं हो जाता. बस इतना है की मैं अपने भारतीय होने पे जो नाज़ करता हूँ उसे छुपाता नहीं दिखाता हूँ. मुझे ज़िंदगी में चन्द लोग ही मिले हैं जिन्होंने अपनी जाति सूचक शब्द को इसी उद्देश्य से हटाया हो . मेरी सोच है की ऐसा करने से समाज में विभाजन काम होगा. कब तक हम खुद को पंडित बनिया शूद्र क्षत्रीय की श्रेणी में बांटते रहेंगे? कब बनेंगे हम सच्चे भारतीय?

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